डायबिटीज अब उम्र, देश व परिस्थिति की सीमाओं को लांघ चुका है
वैसे तो जून में कई विश्वदिवसों का आयोजन किया जाता है। जून का तीसरे और चैथे सप्ताह में तो प्राय: हर दिन ही किसी न किसी विश्व दिवस का आयोजन किया जाता है। और आज की भागदौड़ भरे मानव जीवन में जिसका मनाया जाना बेहद जरूरी भी है। डायबिटीज के रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से मधुमेह जागृति दिवस मनाया जाता है। भारत को विश्व मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। इस समय भारत में लगभग पांच करोड़ मधुमेह रोगी हैं। अर्थात तब हर पांचवां मधुमेह रोगी भारतीय होगा। मधुमेह वृध्दि की दर चिंताजनक है। विश्व भर में इस रोग के निवारण में प्रति वर्ष 250 से 400 मिलियन डॉलर खर्च हो जाता है। हर साल लगभग 50 लाख लोग नेत्रों की ज्योति खो देते हैं और दस लाख लोग अपने पैर गंवा बैठते है। मधुमेह के कारण प्रति मिनट 6 मौते होती हैं और गुर्दे नाकाम होने का यह प्रमुख कारण है। आज विश्व के लगभग 95 प्रतिशत रोगी टाईप 2 मधुमेह से पीड़ित है। कोरोना की तीसरी लहर साधारण भाषा में इसे शुगर या शक्कर की बीमारी कहते हैं। यहां शक्कर से आशय हमारे शरीर में व्याप्त ग्लूकोज से है। रक्त ग्लूकोज शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और काबोर्हाइड्रेट आंतों में पहुंचकर ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है फिर अवशोषित होकर रक्त में पहुंचता है। रक्त से कोशिकाओं के भीतर उसका प्रवेश होता है और इसके लिए इंसुलिन की आवश्यकता होती है। इंसुलिन एक हार्मोन है जो शरीर के पेंक्रियाज (अग्नाशय)नामक ग्रंथि से निकलता है। इंसुलिन की कमी से रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है जोकि मूत्र के साथ बाहर निकलता है और मधुमेह रोग का सूचक माना जाता है। मतलब यह कि मधुमेह इंसुलिन की कमी से होता है न कि किसी अन्य कारण से। और मधुमेह की चिकित्सा का उद्देश्य है रक्त में शुगर की मात्रा को सामान्य रखना, अन्यथा शरीर के अंगों-नाक, कान, गला, आंख, दांत और पैरों को क्षति पहुंचती है। कोरोना से स्वस्थ को होने के बाद भी रह सकता है और यह शिकायत मधुमेह के आंकड़े चैंकाने वाले हैं और हमें सोचना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। शोध बताते हैं कि भारत में आनुवांशिक तौर पर मधुमेह की आशंका बलवती है। इसका संबंध किसी विशेष आयु,वर्ग या लिंग से नहीं है बल्कि आधुनिक जीवन शैली ने ही युवाओं और छोटे बच्चों तक को इस रोग से पीड़ित कर दिया है। आजकल होटलों और फास्ट फूड़ सेंटर्स में जाने का चलन बढ़ा है। लोग आवश्यकता से अधिक कैलोरी का भोजन करके मोटापे का शिकार हो रहे हैं जबकि उनकी दिनचर्या में व्यायाम और शारीरिक श्रम का अभाव है। युवाओं और बच्चों में यह प्रवृत्ति आम है। इस कारण कम उम्र के मधुमेह रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। डायबिटीज अब उम्र, देश व परिस्थिति की सीमाओं को लांघ चुका है। इसके मरीजों का तेजी से बढ़ता आंकड़ा दुनियाभर में चिंता का विषय बन चुका है। कोरोना वायरस उत्पत्ति की जांच में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता भारत अपनी युवा आबादी की शिराओं में धीरे-धीरे मीठा जहर घुलने की आशंका विशेषज्ञों की नींद उड़ाए हुए है। पश्चिम में अधिकतर लोगों को उम्र के छठवें दशक में मधुमेह होता है, जबकि भारत में 30 से 45 वर्ष की आयु में ही इस बीमारी की दर सबसे अधिक है। टाइप वन मधुमेह प्राय: बचपन या युवावस्था में होता है जिसे टाइप वन मधुमेह कहते हैं। इसमें अग्नाशय ग्रंथि से बहुत कम मात्रा में इंसुलिन उत्पन्न होती है या बिल्कुल उत्पन्न नहीं होती। इसके रोगी को नियमित रूप से रक्त ग्लूकोज के नियंत्रण के अलावा जीवित रहने के लिए इंसुलिन लेनी पड़ती है। टाइप-2 मधुमेही अधिक आयु के लोगों में होता है। यह बीमारी तब होती है जब शरीर के ऊतक इंसुलिन की सामान्य या अधिक मात्रा के लिए बहुत संवेदनशील या प्रतिरोधक होते हैं। इस स्थिति में अग्नाशय से कम इंसुलिन उत्पन्न होती है। इस मधुमेह के कुछ रोगियों के लिए भी इंसुलिन लेना आवश्यक होता है। मधुमेह के पीड़ितों में लगभग 90 प्रतिशत टाइप 2 मधुमेह के रोगी होते हैं। इन रोगियों में रक्त ग्लूकोज अनियंत्रित होने पर शरीर में पानी की अधिकता और नमक की कमी हो जाती है। अन्य जटिलताओं में आंखों की रोशनी जाना, मूत्राशय और गुदे का संक्रमण तथा खराबी, धमनियों में चर्बी के जमाव के कारण चोटों में संक्रमण तथा हाथ-पैरों में गैंग्रीन और हृदय रोग होने का खतरा रहता है। अतरू ऐसे रोगियों का सिर्फ मधुमेह का उपचार नहीं होता बल्कि उनके तमाम अंगों की कार्यप्रणाली भी नियंत्रित करनी पड़ती है। बता दें कि मधुमेह जड़ से खत्म होने वाला रोग नहीं है, इसे व्यायाम, संतुलित आहार व प्राकृतिक उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। चूंकि यह आनुवंशिकी के साथ-साथ गलत जीवनचर्या से उपजने वाली बीमारी हैं, अतरू इसकी चिकित्सा में व्यायाम एवं प्राकृतिक उपायों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। सच तो यह है कि संतुलित आहार विहार और स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर जीवन पर्यंत निरोग रहा जा सकता है। अत: बाल्यावस्था से ही इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। रोगग्रस्त होने के बाद रोगमुक्ति हेतु प्रयास करने से कहीं बेहतर है कि निरोगी काया के लिए स्वाभाविक रूप से सदैव सजग रहा जाये। भूख और प्यास ज्घ्यादा लगना, अचानक वजन कम हो जाना, चीजों का धुंधला दिखाई देना, बार-बार पेशाब लगना, सांस फूलना, ज्यादा थकान महसूस होना, शरीर में खुजली होना, किसी भी घाव को ठीक होने में अधिक समय लगना डाईबिटीज की विशेष पहचान है। इसके बचाव के लिए डाईबिटीज पीडित व्यक्ति को आलू, चावल, शक्कर, मीठे फल, केला, केक, पेस्ट्री, घी, मक्खन, समोसा, कचैरी, ज्यादा तेल वाली चीजों करना ठीक रहता है। ऐसे लोग किसी भी फल का मुरब्बा, नारियल आदि का सेवन न करें। इसके साथ ही जो लोग मांसाहारी होते है, उन्हें अंडे, चिकन, मटन, मछली, चाय, कॉफी, शराब, धूम्रपान आदि का सेवन कम ही करना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि मधुमेह जीवनशैली के कारण होने वाला रोग है लिहाजा इसके उपचार में जीवनशैली को ठीक करना बेहद जरूरी है।इससे बचने के लिए जरूर जानिए कुछ देशी नुस्खे मधुमेह रोगियों के लिए -
1 नींबू : मधुमेह के मरीज को प्यास अधिक लगती है। अत: बार-बार प्यास लगने की अवस्था में नींबू निचोड़कर पीने से प्यास की अधिकता शांत होती है।
2 खीरा : मधुमेह के मरीजों को भूख से थोड़ा कम तथा हल्का भोजन लेने की सलाह दी जाती है। ऐसे में बार-बार भूख महसूस होती है। इस स्थिति में खीरा खाकर भूख मिटाना चाहिए।3 गाजर-पालक : इन रोगियों को गाजर-पालक का रस मिलाकर पीना चाहिए। इससे आंखों की कमजोरी दूर होती है।
4 शलजम : मधुमेह के रोगी को तरोई, लौकी, परवल, पालक, पपीता आदि का प्रयोग ज्यादा करना चाहिए। शलजम के प्रयोग से भी रक्त में स्थित शर्करा की मात्रा कम होने लगती है। अत: शलजम की सब्जी, पराठे, सलाद आदि चीजें स्वाद बदल-बदलकर ले सकते हैं।
5 जामुन : मधुमेह के उपचार में जामुन एक पारंपरिक औषधि है। जामुन को मधुमेह के रोगी का ही फल कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसकी गुठली, छाल, रस और गूदा सभी मधुमेह में बेहद फायदेमंद हैं। मौसम के अनुरूप जामुन का सेवन औषधि के रूप में खूब करना चाहिए।
6 जामुन की गुठली संभालकर एकत्रित कर लें। इसके बीजों जाम्बोलिन नामक तत्व पाया जाता है, जो स्टार्च को शर्करा में बदलने से रोकता है। गुठली का बारीक चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए। दिन में दो-तीन बार, तीन ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से मूत्र में शुगर की मात्रा कम होती है।
7 करेले : प्राचीन काल से करेले को मधुमेह की औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसका कड़वा रस शुगर की मात्रा कम करता है। मधुमेह के रोगी को इसका रस रोज पीना चाहिए। इससे आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। अभी-अभी नए शोधों के अनुसार उबले करेले का पानी, मधुमेह को शीघ्र स्थाई रूप से समाप्त करने की क्षमता रखता है।
8 मैथी : मधुमेह के उपचार के लिए मैथीदाने के प्रयोग का भी बहुत चर्चा है। दवा कंपनियां मैथी के पावडर को बाजार तक ले आई हैं। इससे पुराना मधुमेह भी ठीक हो जाता है। मैथीदानों का चूर्ण बनाकर रख लीजिए। नित्य प्रात: खाली पेट दो टी-स्पून चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिए। कुछ दिनों में आप इसकी अद्भुत क्षमता देखकर चकित रह जाएंगे।
9 गेहूं के जवारे : गेहूं के पौधों में रोगनाशक गुण विद्यमान हैं। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों का रस असाध्य बीमारियों को भी जड़ से मिटा डालता है। इसका रस मनुष्य के रक्त से चालीस फीसदी मेल खाता है। इसे ग्रीन ब्लड के नाम से पुकारा जाता है। जवारे का ताजा रस निकालकर आधा कप रोगी को तत्काल पिला दीजिए। रोज सुबह-शाम इसका सेवन आधा कप की मात्रा में करें।
10 अन्य उपचार : नियमित रूप से दो चम्मच नीम का रस, केले के पत्ते का रस चार चम्मच सुबह-शाम लेना चाहिए। आंवले का रस चार चम्मच, गुडमार की पत्ती का काढ़ा सुबह-शाम लेना भी मधुमेह नियंत्रण के लिए रामबाण है।