जानवरों के हमले का मुख्य कारण सिकुडता जंगल फैसले गांव की आवादी, पानी -भोजन की तलाश के लिए अवैध कारणों के कारण जंगल खत्म की कतार में है भोजन की तलाश में वे गांवों की रुख करते आ रहे है। आश्चर्यजनक तरीके से, बाघ वनक्षेत्र या अपने जंगल के किनारों, खासकर गन्ने के खेत में जहां बाघ प्राय: रहने लगे हैं, लोगों पर हमला करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर हमले दिन में होते हैं, जिसमें बताया गया है सात से 70 वर्ष की आयु के लोगों पर हुए हमले दुर्घटनावश आमने-सामने आ जाने की वजह से होते हैं रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में, वर्ष 2006 और 2012 के बीच 90.1 प्रतिशत मामले तेंदुए और बाघों के हैं। अन्य 9.9 प्रतिशत संघर्ष के मामले भालू, हाथी और मगरमच्छ द्वारा हुए हैं। हालांकि 50 प्रतिशत तेंदुए बच्चों और छोटे पशुओं जैसे भेड़, बकरी पर हमला करते हैं, जबकि बाघ बड़े जंतुओं जैसे भैंसों, घोड़ों और गायों पर हमला करते हैं। बाघों के मामलों में, अधिकतर लोग लकड़ी इकट्ठा करने जंगल जाते हैं और तभी संघर्ष होता है। ऐसे भी कई मामले हैं जहां बाघों ने मानवों के आवास में प्रवेश कर मानवों की हत्या की है, लेकिन यह काफी कम है रिपोर्ट के अनुसार, बाघों द्वारा 87 प्रतिशत हमले जंगलों, इसके आस-पास और गन्ने के खेतों में किए गए हैं, जबकि 13 प्रतिशत हमले गांवों और घरों के पास किए गए। बाघों की तुलना में तेंदुओं ने जंगलों और इसके आस-पास केवल 7.94 प्रतिशत हमले किए। तेंदुओं ने इस दौरान 92.1 प्रतिशत हमले गांव या इसके आस-पास किए। इनमें से तेंदुओं ने 47.6 प्रतिशत हमले लोगों के घरों या घरों के आस-पास किए। तेंदुओं ने वहीं 15.87 प्रतिशत हमले गांव के अंदर किए, वहीं कृषि भूमि क्षेत्र में 28 प्रतिशत हमले किए। रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2013 के बीच बाघों के हमले में कम से कम 49 लोग मारे गए और 24 घायल हुए। वहीं तेंदुओं के हमले में 14 लोग मारे गए और 49 घायल हुए।उत्तर प्रदेश को छोड़कर पूरे भारत में 2015-16 के दौरान 32 लोग मारे गए और 2016-17 में 13 लोगों की मौत हुई।
तेंदुओं ने अब निकटवर्ती ग्रामसभाओं के कुत्तों, गायों, बैलों, बकरियों को मारने के बाद अब मनुष्यों पर भी हमला शुरू कर दिया है। मगर इस संघर्ष को रोकने, जंगलों को बचाने की बात छोड़ वन विभाग मुआवजे की बात कर मूल समस्या से आँखें फेर रहा है।
पूरे देश में ऐसी घटनाएं रुकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं?वास्तव में मानवीय हस्तक्षेप और दोहन के कारण न सिर्फ वन क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं, बल्कि वन्य जीवों के शांत जीवन में मानवीय खलल में भी सीमा से अधिक वृद्धि हुई है। घास के मैदान कम होने से वे जीव भी कम हुए हैं, जो मांसाहारी जंगली जानवरों का भोजन होते हैं। जिसके बाद मानव और वन्यजीव संघर्ष की लखनऊ जैसी वीभत्स तस्वीरें सामने आती हैं। दुनियाभर में जंगली जानवरों के हमलों में हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाते हैं तो बड़ी संख्या में लोग घायल भी होते हैं। मानव और वन्य जीवों का यह संघर्ष अब राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत में सबसे ज्यादा खराब हालात उत्तराखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में हैं। भारत में हाथी और बाघ जैसे जानवर औसतन हर रोज एक व्यक्ति को मार रहे हैं। लेकिन इसके उलट इंसान भी रोजाना औसतन एक तेंदुए को मार रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, अप्रैल-2014 से इस साल मई महीने के 1,143 दिनों में 1,144 लोग जंगली जानवरों के हमले में जान गंवा चुके हैं। यह ट्रेंड लगातार जारी है और इसके कम होने के आसार नहीं दिख रहे।आंकड़ों के मुताबिक, इसी अवधि में देशभर में 345 बाघ और 84 हाथी मारे गए। हालांकि इनमें से ज्यादातर जानवर शिकारियों के हाथों मारे गए। हाथियों को उनके दांतों के लिए निशाना बनाया गया। इंसानों की जो मौतें हुईं उनमें से 1,052 लोगों की मौत के लिए हाथी जिम्मेदार थे, जबकि 92 लोगों ने बाघ का शिकार बनकर जान गंवाई। इस अवधि में हाथियों और बाघों के हमले में सबसे ज्यादा इंसानों की मौत पश्चिम बंगाल में हुई। कुल मौतों में से एक तिहाई लोगों की जान अकेले इसी राज्य में गई। राज्य में हाथियों की कुल तादाद 800 के करीब है। दूसरे राज्यों में भी ऐसी काफी घटनाएं हो रही हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल-2015 में करीब 950 लोग जानवरों के हमले में मारे गए हालांकि इनमें घटनाओं की तादाद नहीं बताई गई है।देश का कोई भी कोना हो जीव-जंतुओं का पूरा आहार चक्र ही बाधित हो गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि घास प्रबन्ध अर्थात शाकाहारी जानवरों के लिए भोजन प्रबन्ध बिगड़ गया है। जब इनका भोजन अर्थात चारा जंगलों में नहीं होगा तो ये शहर-गांवों की तरफ क्यों नहीं आएंगे?
बाघ, तेंदुआ आदि जंगल छोड़कर आबादी की तरफ आने लगें तो इसे उनके संघर्ष की इंतहा ही कहना चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में करीब साढे तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वे के आधार पर 14 हजार तेंदुए हैं। इनके स्वभाव में होता है कि ये घने जंगलों में रहने वाले बाघ से टक्कर नहीं लेता।पिछले 6 सालों में 257 लोगों की मौत जंगली जानवरों के हमलों की वजह से हुई है, जबकि 1,486 लोग जख्मी हुए हैं। सिर्फ उत्तराखंड में बात करें तो राज्य बनने से लेकर अब तक के 17 सालों में विभिन्न कारणों से 357 हाथी, 128 बाघ और 957 गुलदार मारे गए हैं।
तेंदुओं ने अब निकटवर्ती ग्रामसभाओं के कुत्तों, गायों, बैलों, बकरियों को मारने के बाद अब मनुष्यों पर भी हमला शुरू कर दिया है। मगर इस संघर्ष को रोकने, जंगलों को बचाने की बात छोड़ वन विभाग मुआवजे की बात कर मूल समस्या से आँखें फेर रहा है।
पूरे देश में ऐसी घटनाएं रुकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं?वास्तव में मानवीय हस्तक्षेप और दोहन के कारण न सिर्फ वन क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं, बल्कि वन्य जीवों के शांत जीवन में मानवीय खलल में भी सीमा से अधिक वृद्धि हुई है। घास के मैदान कम होने से वे जीव भी कम हुए हैं, जो मांसाहारी जंगली जानवरों का भोजन होते हैं। जिसके बाद मानव और वन्यजीव संघर्ष की लखनऊ जैसी वीभत्स तस्वीरें सामने आती हैं। दुनियाभर में जंगली जानवरों के हमलों में हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाते हैं तो बड़ी संख्या में लोग घायल भी होते हैं। मानव और वन्य जीवों का यह संघर्ष अब राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत में सबसे ज्यादा खराब हालात उत्तराखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में हैं। भारत में हाथी और बाघ जैसे जानवर औसतन हर रोज एक व्यक्ति को मार रहे हैं। लेकिन इसके उलट इंसान भी रोजाना औसतन एक तेंदुए को मार रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, अप्रैल-2014 से इस साल मई महीने के 1,143 दिनों में 1,144 लोग जंगली जानवरों के हमले में जान गंवा चुके हैं। यह ट्रेंड लगातार जारी है और इसके कम होने के आसार नहीं दिख रहे।आंकड़ों के मुताबिक, इसी अवधि में देशभर में 345 बाघ और 84 हाथी मारे गए। हालांकि इनमें से ज्यादातर जानवर शिकारियों के हाथों मारे गए। हाथियों को उनके दांतों के लिए निशाना बनाया गया। इंसानों की जो मौतें हुईं उनमें से 1,052 लोगों की मौत के लिए हाथी जिम्मेदार थे, जबकि 92 लोगों ने बाघ का शिकार बनकर जान गंवाई। इस अवधि में हाथियों और बाघों के हमले में सबसे ज्यादा इंसानों की मौत पश्चिम बंगाल में हुई। कुल मौतों में से एक तिहाई लोगों की जान अकेले इसी राज्य में गई। राज्य में हाथियों की कुल तादाद 800 के करीब है। दूसरे राज्यों में भी ऐसी काफी घटनाएं हो रही हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल-2015 में करीब 950 लोग जानवरों के हमले में मारे गए हालांकि इनमें घटनाओं की तादाद नहीं बताई गई है।देश का कोई भी कोना हो जीव-जंतुओं का पूरा आहार चक्र ही बाधित हो गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि घास प्रबन्ध अर्थात शाकाहारी जानवरों के लिए भोजन प्रबन्ध बिगड़ गया है। जब इनका भोजन अर्थात चारा जंगलों में नहीं होगा तो ये शहर-गांवों की तरफ क्यों नहीं आएंगे?
बाघ, तेंदुआ आदि जंगल छोड़कर आबादी की तरफ आने लगें तो इसे उनके संघर्ष की इंतहा ही कहना चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में करीब साढे तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वे के आधार पर 14 हजार तेंदुए हैं। इनके स्वभाव में होता है कि ये घने जंगलों में रहने वाले बाघ से टक्कर नहीं लेता।पिछले 6 सालों में 257 लोगों की मौत जंगली जानवरों के हमलों की वजह से हुई है, जबकि 1,486 लोग जख्मी हुए हैं। सिर्फ उत्तराखंड में बात करें तो राज्य बनने से लेकर अब तक के 17 सालों में विभिन्न कारणों से 357 हाथी, 128 बाघ और 957 गुलदार मारे गए हैं।
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