Tuesday, 5 November 2019

चुनाव के बाद जनता का दर्द !

चुनाव के बाद जनता का दर्द !
चुनाव  के करीब आते ही नेताओं के पास उनके चमचों की भीड़ इकठ्ठी होने लगती है शायद ,उनको नेता जी कोई काम दे दे। चुनाव का पर्चा भरते समय कई हजारों की भीड इकठ्ठी करना मामूली काम नही था पर अब दलालों ने यह काम आसान कर दिया । 500 -600 रुपये में पैदल और 800-1000 में मोटर साइकिल,2000 में कारों का काफिला मिल जाता। जितने आदमी चाहिए मिल जाते है। शान शौकत से शाही अंदाज से पर्चा भरने जाते है । चलों पर्चा भरकर आ गये चुनाव की तैयारी भी होने लगी, गली -गली में जिन्दावाद के नारे गूंजते मिल जायेगें। नेताजी हाथ जोड़कर आप के साथ हमदर्द बनकर खड़े रहने का बादा करते दिखाई देगें चाहे जीतने के बाद साढे चार साल तक दिखाई नही दे पर बड़े-बड़Þे आश्वासन एक दम कड़क होगा।  जैसे सगेभाई हो। उस समय आप के पैर छूकर माफी मांगते दिखाई दे रहे होगें कहेगे कि भूल चूक हो गई होतो माफ करना ,लेकिन वोट हमेंही देना। मै आप का महदर्द हूं आप के गांव-कस्वे में कितने काम करवाये  विकासों का पिटारों की लिस्ट गिनाएंगे।  इसमें साथ में चलने वाले लोग भी उनकी हां में हा मिलाते नजर आयागे। ढावों पर कार्यकर्ताओं को तन्दूरी दाल, चिकन कवाब, चिकन बिरयानी, तन्दूरी रोटीयों का भोजन होता दिखाई देगा। दूसरा उसकी बुराई करता दिखाई देगा। चलो शांत तौर से चुनाव हो गया । कही खुशी कहीं गम। किसी ने नेताजी के लिए झगडा भी कर लिया वाद में होगा तब देखा जायगा। फिर सोचा चलकर देखते है कि चुनाव के वाद जनता कितनी खुश है या दु:खी है।  एक कस्वे से गुजरा तो कनाते टेंन्ट फटे हुई जर-जर  हो कर रो रही थीं। लगा मानो कह रही है कि अब उनका महत्व कुछ नहीं रह गया है, इसलिए कि हारने वाला और जीतने वाला दोनों उसे छोड़ गए हैं । तो टेस्ट, स्टेज उजड़े-उजड़े उदासी मैं मुंह लटकार अपनी दुर्दशा की कथा आप कह रहे थे। जीपें- कारे एककम धूल सै ढंकी पंक्चर खड़ी थीं।चुनाव का बखेड़ा भरी बड़ा अजीब होता है। शुरू होते ही तमाम तरह के काम फैल जाते हैं और निपट जाएगे जीतने वाला खुश और हारने वाला दु:ख । 
सारे घोषणा पत्र और आश्वासन मटियामेट, रह जाता है तो सिर्फ चंद लोगों का रोने-पीटना। चुनाव बाद जो लोग सर्वाधिक रोते हैं,उनमें होते हैं- माइकवाला, गाड़ियां किराए पर देने वाला, ढाबे वाला, माला-फूल सप्शाईं करने वाला और तोरणद्बार सजाने वाला और नेताजी के पीछे जिन्दावाद -मुर्दावाद के नारे लगाने वाला जो 500-600 रुपये प्रतिदिन पर लाया गया था। पिछले दिनों जो चुनाव निपटे हैं, उनमें से एक चुनाव क्षेत्र का दौरा किया तो मैने हालात कुछ अजीव दिखाई दिये जो साफ कपडे पहनकर नेता ती को गाडी में घुमाते थे, माइक में बडी आवाज, बढ़िया खाना खिलाने वाले। जीपें-कारें एकदम छकड़ा होकर घूल से ढंकी पंचर हुई खड़ी थीं। जो जीप कल तक फर्राटे से दौड़ रही थी, उसकी गति को जैसे किसी ने कील लगा दिया। पेट्रोलपंप वाला अपना बिल लिए भटक रहा है तो जीतने वाला उसे परमिट रद्द करने की धमकी दे रहा है। मैंने एक मतदाता से पुन, ‘कहो लाला कैसी रही ?' वह अपना माथ पीटकर बोला, ‘क्या बताएं भाई साहब, जीतने के बाद नेताजी मिलते नहीं और मिलते हैं ते पहचानते नहीं, पहचानते हैं तो आश्वासनों का पुलिंदा थमा देते हैं।  मैंने पूछा। ‘तो फिर चुनाव से तुम्हें क्या फायदा हुआ ?' मतदाता बोला, 'सिर्फ तीन फायदे हुए-पहला मारा-मारी में टीशर्ट और जूते मिल गये, दूसरा, पांच-सात दिन तक नशे का इंतजाम  हो गया और तीसरा,चुनाव रहा तब तक अच्छा खाना मिला। तो फिर क्या बात है, तुम्हारे तो वोट की कीमत वसूल हो गई- अब तो शांत रहो। मैंने कहा। उत्तर में वह बोला, 'अजी भाई जी, बोट की भी कोई कीमत होती है वह तो अमूल्य है अमूल्य।'‘जिसका कोई मूल्य नहीं होता, वहचीज मुफ्त की होती है और मुफ्त की चीज का जो भी मिल जाए बड़ी बात है। तुम्हें वोट का मूल्य मिल चुका है।'  अजी यह तो कोई कार्यकर्ता हैं-इसलिए फिर से ये चीजें हाथ लग गई वरना मुफ्त दाता को ते उपहार में निसानियां मिली हैं। वह बोला। लगे हाथ मैं थोड़ी देर में उस ढाबे वाले के यहां जा धमका, जहां चंद रोज 'पहले छंगर लगा करता था। सिर पर हाथ लगाए रोने हीं वाला था कि मैंने पूछा, क्यों क्या बातहै ? ढाबे वाले ने कहा, ‘पांच हजार रुपए बाकी रह गए-हारने वाले पर और जीतने वाले पर। अब कहता है  मेरा तो दिवाला ही पिट गया।  दाल आटा  देने वाला चाहे ते मुझे रख ले अपने यहांं नौकर, पैसेतोे न दे पाऊंगा।  'ते अब क्या योजनाएं  हैं ?''योजना क्या है, बस दस-पंद्रह दिन मातम मनाएंगे बाद में धंधा-पानी में ध्यान देंगे। अभी ते मन ही नही ंलग रहा है। आटे-दाल वाला रोज पैसों के लिए चक्कर काटता है, उसे देने की जुगाड में है  अन्यथा  ढावा  बंद  करने की नैबत आ गई है। ढावे वाले ने सच उगला।  उसी समय जीप वाला आ गया । मैने उससे पूछा कहो भाई कैसा है धंधा पानी? बोला, ‘साला जीतने वाला नेतालाल भाड़ा नहीं दे रहा  बस आश्वासन देता.है। ज्वादा कहता हूं तो धमकी देता है परमिट खत्म करवा दूगा। मुझे ऐसा पता होता तो कभी नहीं देता अपनी गाड़ियां, सारी गाड़ियां काठ-कबाड़ हो गईं हैं। सुधारने के लिए पैसा नहीं है।पैसे के मामले में धोखा हुआ हैधोखा हुआ है साहब। गरीबी हटाने की बात करते थे पर बदले मेरी गरीबी बढ़ा गए।''अब क्या प्रोग्रामहै ? यह गांव छोड़कर शहर में जाकर कोई छोटा-मोटा घंघा करने की सोचत हूं। बाल-बच्चे  बच्चों को खाना खिलाने के लिए पैसे नही है। केवल बिचौलियों के दिन फिरे हैं, जिसने वोट दिलाने को ठेका लिया था। नया जीप ले आये है तथा मकान की नई मंजिल का काम करवा रहा है। चंद प्रचारक और कार्यकर्ता भी माला-माल हो गये हो गए हैं। जिनको दिन में एकवार खाने को नहीं था, वे मिठायां खा रहे है, हम लुटे हैं।' जीप वाला रो पड़ा। मुझे बड़ी पीड़ा हुईं। चुनाव से तो माहौल उल्टा बिगड़ गया है। सारी चिल्ल-पों खत्म हो गई है और माइक वाला दांत पीस रहा है। मैंने पूछा,'क्यों भाई, तुम और तुम्हारे शक्लपर बारह कैसे बजे है वह बोला, 'क्या बताएं भाई आधा  पैसा जीतेना वाला और आधा हारने वाला डकार गए। दोनों ने हाथ जोड़ लिए हैं। कहते हैं भाई सब्र रखो, पांच साल बाद फिर चुनाव होंगे, तब कर देगे सारा हिसाब। हम कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं।'तुम्हारे साथ तो वाकई तुम्हारे साथ अन्याय हुआ! 'क्या बताएं, जनाब ! हर बार वही होता है और हम हैं कि समझते नहीं और लोभ में आकर लुट बैठते हैं। उससे सबक लेता तो, आज माइक की आवाज इस कदर नहीं फट गई होती। माइक वाला बोला मैंने पूछ, 'अब क्या कार्यक्रम है ? 'अब प्रोग्राम यह है कि मैं आपके पास डेढ़ हजार रुपए उधार लेने आने वाला था। आप आ गए हैं तो नेकीऔर पूछ-पूछ वाली बात हो गई है। 'लेकिन मैं तो खुद परेशान हैं भाषण लिखने और मेनिफेस्टो के लिए तीन हजार रुपए देने का वादा  किए थे,एक पैस नहीं दिया है नेताजी ने अब तक। इसलिए उधार के लिए तो तुम बैंक में एप्लाई करो। नेताजी की तिकड़म लगाकर दस- बीस हजार मार लो। मैंने पिंड छुड़ाया। वह बहक गया। उसकी आंखों में चमक लौट आई और एप्लीकेशन लिखने' लगा। चुनाव बाद के इन दर्द भरे अनुभवों से रू-ब-रू होकर मैं भी दंग था। 
प्रेमशंकर शर्मा( पुरोहित)
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