खाने की बबार्दी रोकने की दिशा में महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। खासकर बच्चों में शुरू से यह आदत डालनी होगी कि उतना ही थाली में परोसें, जितनी भूख हो। एक-दूसरे से बांट कर खाना भी भोजन की बबार्दी को बड़ी हद तक रोक सकता है। भोजन और खाद्यान्न की बबार्दी रोकने के लिए हमें अपने दर्शन और परम्पराओं के पुर्नचिंतन की जरूरत है। हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है। धर्मगुरुओं एवं स्वयंसेवी संगङ्गनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अभियान सोचें, खाएं और बचाएं भी एक अच्छी पहल है, जिसमें शामिल होकर की भोजन की बबार्दी रोकी जा सकती है। हम सभी को मिलकर इसके लिये सामाजिक चेतना लानी होगी तभी भोजन की बबार्दी रोकी जा सकती है।
भारत भले ही मंगल पर उपस्थिति दर्ज करा चुका हो, लेकिन यह भी सच है कि देश में १९ करोड़ लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिल पाता। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा भूखे लोग भारत में रहते हैं फिर भी देश में हर साल ४४ हजार करोड़ रुपये का खाना बर्बाद होता है। भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है और यही कारण है कि भोजन जूङ्गा छोड़ना या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। मगर आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपना यह संस्कार भूल गए हैं। होटल-रेस्तरां के साथ ही शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में सैकड़ों टन खाना रोज बर्बाद हो रहा है। भारत ही नहीं, समूची दुनिया का यही हाल है। एक तरफ करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किया जा रहा है। दुनिया भर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई यानी लगभग १ अरब ३० करोड़ टन बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। विश्व खाद्य संगङ्गन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। अगर इस बबार्दी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है। विश्व भूख सूचकांक में भारत का ६७वां स्थान है। देश में हर साल २५.१ करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है लेकिन हर चौथा भारतीय भूखा सोता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल २३ करोड़ टन दाल, १२ करोड़ टन फल और २१ करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं। विश्व खाद्य संगङ्गन के मुताबिक भारत में हर साल पचास हजार करोड़ रुपए का भोजन बर्बाद चला जाता है, जो कि देश के खाद्य उत्पादन का चालीस फीसद है। एक आकलन के मुताबिक अपव्यय के बराबर की धनराशि से पांच करोड़ बच्चों की जिंदगी संवारी जा सकती है। चालीस लाख लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और पांच करोड़ लोगों को आहार सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है। भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के दस लाख बच्चों के भूख या कुपोषण से मरने के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र ने जारी किए हैं। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक खाने की बबार्दी में अमेरिका सबसे आगे है। अमेरिका में हर साल एक व्यक्ति औसतन ७६० किलो खाना बर्बाद करता है, जबकि यूरोप में भोजन की बबार्दी का यह आंकड़ा ६० से ११० किलो है। खाना बर्बाद करने में दूसरे स्थान पर ऑस्ट्रेलिया और तीसरे नंबर पर डेनमार्क है। इसके बाद स्विट्जरलैंड और कनाडा का नंबर आता है। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ४० फीसदी खाना बर्बाद हो जाता है।
ऐसा कानून पाकिस्तान में कई साल से है; और वहां इसकी पहल सुप्रीम कोर्ट ने की थी। पाकिस्तान में इस कानून पर सख्ती से अमल भी हो रहा है। अब जरा हमारे यहां के हालात पर गौर कीजिए। एक सर्वे के अनुसार, अकेले बेंगलुरु शहर में हर साल शादियों में ९४३ टन पका हुआ खाना बर्बाद होता है। इतने खाने से लगभग २.६ करोड़ लोगों को एक समय का सामान्य भारतीय खाना खिलाया जा सकता है। पाकिस्तान में कानून है कि शादी या अन्य समारोहों में एक से ज्यादा मुख्य व्यंजन नहीं परोसा जा सकता। यह सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया है कि एक करी, चावल, नान या रोटी, सलाद और दही या रायता से ज्यादा परोसना गैर-कानूनी है। विभिन्न राज्यों में पारित कानून में रात में दस बजे के बाद विवाह समारोह पर पाबंदी, घर के बाहर, पार्क या गली में बिजली के बल्बों की सजावट व आतिशबाजी के साथ-साथ दहेज की नुमाइश पर भी सख्त पाबंदी है। इस कानून के उल्लघंन पर एक महीने की सजा और ५० हजार से दो लाख रुपये तक के जुमार्ने का प्रावधान है। शुरूआत में वहां के जमींदार वर्ग ने इसका विरोध किया, कुछ लोग अदालत भी गए, मगर सुप्रीम कोर्ट ने कोई ढील देने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ, आम लोगों ने इस कानून का खुलकर स्वागत किया है। वहां प्रशासन ने इस कानून को लागू कराने का जिम्मा बारात घरों, बैंक्वेट हॉल, फार्म हाउस आदि पर डाल रखा है। यदि कहीं कानून टूटता पाया गया, तो इनके मालिकों पर पहले कार्रवाई होती है। बहरहाल, भोजन की बबार्दी का रुकना न केवल हमारे देश के भूखे लोगों के लिए, बल्कि हमारे संसाधनों के लिए भी एक वरदान होगा। आखिर हम जितना अन्न बर्बाद करते हैं, उतना ही जल भी बर्बाद होता है, और उतनी ही जमीन की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित होती है। यदि ऐसा भी कोई सर्वे भारत में अन्न की बबार्दी के संबंध में किया जाए तो बहुत संभव है कि आंकड़ा उतना ही शर्मसार करने वाला आएगा जितना आंकड़ा भुखमरी को लेकर उजागर हुआ है। भारत में अन्न की बबार्दी उसके रखरखाव में लापरवाही और कुप्रबंधन से तो होती ही है शादी एवं दूसरे उत्सवों पर दी जाने वाली पाटिNयों में भी अन्न कम बर्बाद नहीं होता। इस बबार्दी को देखकर कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति यह सोच सकता है कि क्या ये पाटिNयां अन्न को बर्बाद करने के लिए ही दी जाती हैं?अन्न की बबार्दी का एक बड़ा कारण शादी-विवाह आदि के मौके पर बनने वाले भोजन से भी जुड़ा है। भारत की संस्कृति में यूं तो अन्न को ब्रह्म का दर्जा दिया गया है इसलिए थाली में झूङ्गा छोड़ना भी अन्नपूर्णा का अपमान माना जाता है पर विडम्बना यह है कि शादी ब्याह या अन्य सामाजिक उत्सवों तथा होटलों, रेस्टोरेंट में तैयार किया गया भोजन का लगभग २० फीसदी हिस्सा कूड़ें में चला जाता है। यह केवल एक शहर का आंकड़ा है जबकि हमारे देश में २९ राज्य हैं।गौरतलब है कि दुनिया भर में जितना भोजन बनता है उसका एक तिहाई यानि एक अरब ३० करोड़ टन भोजन बर्बाद चला जाता है। एक सरकारी अध्ययन की मानें तो ब्रिटेन के कुल उत्पादन के बराबर भारत में अनाज बर्बाद हो रहा है। यानी लगभग ९२ हजार करोड़ रु. का खाद्य पदार्थ हर साल बर्बाद हो जाता है। खाद्य पदार्थों की जितनी बबार्दी हमारे देश में हो रही है उससे पूरे बिहार की आबादी को एक साल खिलाया जा सकता है। भारत सरकार के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नालॉजी के मुताबिक उचित भंडारण की कमी ने भी देश में खाद्यान्न की बबार्दी को बढ़ाया है। भारत में ४० फीसदी अनाज खेतों से घरों तक पहुंचता ही नहीं है। कभी खेतों से मंडी के रास्ते तो कभी मंडियों में वह सड़ जाता है। समस्या यह है कि अनाज और अन्य खाद्य सामग्री को संभाल कर रखने के लिए सही मूलभूत ढांचा नहीं है। सही भंडारण के अभाव में प्याज, सब्जियों और दालों की बबार्दी ज्यादा हो रही है। अगर सर्वे की मानें तो १० लाख टन प्याज और २२ लाख टन टमाटर प्रति वर्षा खेत से बाजार पहुंचते-पहुंचते रास्ते में बर्बाद हो जाते हैं। अगर यही खाद्य सामग्री लोगों तक पहुंच जाए तो देश में निश्चित तौर पर भुखमरी कम होगी ।
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीन और भारत हर साल १.३ अरब टन खाद्यान्न की बबार्दी करते हैं। अगर भंडारण की उचित व्यवस्था हो तो किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सकता है। खाद्य वस्तुओं की बबार्दी का सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है। देश के कई राज्यों में किसान नुकसान के चलते आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं। महाराष्टढ्ढ, गुजरात, पंजाब जैसे राज्यों से किसानों की आत्महत्या की खबरें अक्सर आती रहती हैं। इस साल किसानों ने आलू-प्याज की फसल का बंपर उत्पादन किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इस कदर प्याज का उत्पादन हुआ कि किसान उसे मुफ्त में बांटने को मजबूर हो गए तथा प्याज सड़कों पर फेंक दिए गए ।
अन्न की बबार्दी पर स्लोगन्र
१. अन्न की बबार्दी सबसे बड़ा पाप हैं जीवन में, इसलिए जीतनी हो भूख उतनाही भोजन थाली में।
२. अन्न ही है परब्रह्म, और अन्न ही है जीवन।
३. अन्न की बबार्दी ना करे, बचें हुए भोजन का सदुपयोग करें।
४. प्रोग्राम में होती है अन्न की बबार्दी, जरा सोचें कितनी होती है नुकसानी।
५. आओं, हम सब मिलकर अपने देश में एक ऐसा नियम लाएँ, बचा हुआ अच्छा भोजन जरूरतमंद तक पहुँचाएँ।
६. हम पर कभी भोजन फेकनें की नौबत ना आये, इसलिए कार्यक्रमों में भोजन जरुरत के अनुसार ही बनायें।
७. खाना फेकने के कारण, नुक्सान हो जाये। जहाँ फेके वहाँ फैले अस्वच्छता, और स्वच्छता में बाधा आये।
८. अच्छे दाम नहीं मिलने पर, किसान सब्जी फेके जाए। अगर बाटे लोगों में, तो उनकीं दुआ पाए।
९. अन्न की बबार्दी को रोको, बात हमारी जानों।
१०. खाने के बबार्दी की चिंता से क्यों है सब अनजान ?
दुनियाँ में एक-तिहाई खाने का होता है नुक्सान।
होटलों में भी हम देखते हैं कि काफी मात्रा में भोजन जूङ्गन के रूप में छोड़ा जाता है। एक-एक शादी में ३००-३०० आइटम परोसे जाते हैं, खाने वाले व्यक्ति के पेट की एक सीमा होती है, लेकिन हर तरह के नये-नये पकवान एवं व्यंजन चख लेने की चाह में खाने की बबार्दी ही देखने को मिलती हैं, इस भोजन की बबार्दी के लिये न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संगङ्गन भी चिंतित है। लेकिन तथाकथित धनाढ्य मानसिकता के लोग अपनी परम्परा एवं संस्कृति को भूलकर यह पाप किये जा रहे हैं। सब अपना बना रहे हैं, सबका कुछ नहीं। और उन्माद की इस प्रक्रिया में खाद्यान्न संकट, भोजन की बबार्दी एवं भोजन की लूटपाट जैसी खबरें आती हैं जो हमारी सरकार एवं संस्कृति पर बदनुमा दाग हैंहोटल-रेस्तरां के साथ ही शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में सैकड़ों टन भोजन बर्बाद हो रहा है। औसतन हर भारतीय एक साल में छह से ग्यारह किलो अन्न बर्बाद करता है। जितना अन्न हम एक साल में बर्बाद करते हैं, उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जो फल-सब्जी-अनाज को सड़ने से बचा सकते हैं। इसलिये सरकार को चाहिए कि वह इन विषयों को गंभीरता से ले, नयी योजनाओं को आकार दे, लोगों की सोच को बदले, तभी नया भारत का लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा।
खाने की बबार्दी रोकने की दिशा में ह्यनिज पर शासन, फिर अनुशासनह्ण एवं ह्यसंयम ही जीवन हैह्ण जैसे उद्घोष को जीवनशैली से जोड़ना होगा।
इन दिनों मारवाड़ी समाज में फिजुलखर्ची, वैभव प्रदर्शन एवं दिखावे की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने एवं भोजन के आइटमों को सीमित करने के लिये आन्दोलन चल रहे हैं, जिनका भोजन की बबार्दी को रोकने में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। सरकार को भी शादियों में मेहमानों की संख्या के साथ ही परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या सीमित करने पर विचार करना चाहिए। दिखावा, प्रदर्शन और फिजूलखर्च पर प्रतिबंध की दृष्टि से विवाह समारोह अधिनियम, २००६ हमारे यहां बना हुआ है, लेकिन यह सख्ती से लागू नहीं होता, जिसे सख्ती से लागू करने की जरूरत है। धर्मगुरुओं व स्वयंसेवी संगङ्गनों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। घर की महिलाएं इसमें सहयोगी हो सकती है। खासकर वे बच्चों में शुरू से यह आदत डाले कि उतना ही थाली में परोसें, जितनी भूख हो। इस बदलाव की प्रक्रिया में धर्म, दर्शन, विचार एवं परम्परा का भी योगदान एक नये परिवेश को निर्मित कर सकता है।
प्रस्तुति: प्रेमशंकर पुरोहित
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