सर्दियों के दिनों में बिहार की झील, नदियां और ताल-तलैया प्रवासी मेहमानों से गुलजार हो जाते हैं। प्रवासी पक्षियों का कलरव पर्यटकों को लंबे अरसे से लुभाता रहा है लेकिन इन विदेशी मेहमानों के प्रति अब अतिथि देवो भव की परंपरा नहीं निभाई जाती। पक्षियों के आते ही शिकारियों का झुंड सक्रिय हो जाता है और मेहमानों को डाला जाने वाला दाना ही उनके लिए मौत का सबब बनता है। दूर देश से आई चिड़ियों में से कई अपने वतन नहीं लौट पाती हैं। राष्ट्रीय उच्च पथ के किनारे प्रवासी पक्षियों को बेचते बच्चे मेहमानों के प्रति शिकारियों के निर्मम व्यवहार की कहानी कहते हैं। वन विभाग पक्षियों के अवैध शिकार पर नियंत्रण का दावा करता रहा है लेकिन सच यह है कि क्रूर बर्ताव के कारण अब प्रवासी पक्षियों ने कुछ इलाकों में जाना ही बंद कर दिया है। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो जब पक्षियों के मूल निवास स्थान की झीलें और जलाशय बर्फ में तब्दील हो जाता है और भोजन की कमी होती है तब ये पक्षी अपेक्षाकृत गर्म इलाकों को अपना बसेरा बनाते हैं।
बिहार में इन प्रवासी पक्षियों का सितंबर से ही आना शुरू हो जाता है और ये फरवरी तक इसी इलाके में टिके रहते हैं। सबसे पहले आते हैं खंजन (वामटेल्स) और अबाबील (स्वालीज)। नवंबर में बतख एवं चहा समूह के अन्य जल-पक्षी बड़ी संख्या में आते हैं। बिहार आने वाले प्रवासी पक्षी बाग-बगीचे और जंगलों में रहनेवाले होते हैं। इसमें रेड ब्रेस्टेड लाईकैचर, ब्लैक रेड स्टार्ट पक्षी शामिल है। कई तरह के बाज एवं अन्य शिकारी पक्षी तथा क्रेन एवं स्टोर्क जैसे बड़े-बड़े पक्षी भी प्रवास के लिए बिहार आते हैं। बिहार में छह पक्षी अभयारण्य हैं लेकिन उनकी देखरेख की व्यवस्था लचर है। फतुहा, बेगूसराय, कुशेश्वरस्थान, पटना सिटी जैसे स्थानों पर पक्षियों के व्यापार के बड़े केंद्र हैं। शिकारियों का समूह प्रवासी पक्षियों को इन केंद्रों पर पहुंचाता रहा है। वैसे हर इलाके में मांसाहार के लिए शरारती तत्व प्रवासी पक्षियों को शिकार बनाते हैं। काबर झील विदेशी पक्षियों का मनपसंद बसेरा बनती रही है। पहले लाखों की संख्या में रंग-बिरंगे पक्षी प्रवासी पक्षी यहां छह महीने तक अपना घर बसाते थे लेकिन अब स्थिति बदलती जा रही है। शिकारियों की कुदृष्टि इन पक्षियों पर पड़ी , इस वजह से पक्षियों का आना कम हो रहा है। पेशेवर शिकारी दाने में बेहोशी की दवा मिलाकर इन पक्षियों को पकड़ लेते हैं।
कुछ पक्षियों का बकायदा शिकार होता है। पूरे देश में पक्षियों की 1200 से ज्यादा प्रजातियां और लगभग 2100 उपप्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 350 प्रजातियां प्रवासी हैं जो शीतकाल में यहां आती हैं। पाइड क्रेस्टेड कक्कू (चातक) जैसे प्रवासी पक्षी बरसात में यहां आते हैं। बिहार में पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियां हैं जिनमें से पचास फीसदी प्रवासी हैं। वनों की कटाई, तेजी से हो रहे शहरीकरण और जलाशयों को पाटे जाने से भी प्रवासी पक्षियों का आगमन घटा है। इस वजह से मेहमानों ने अब दूसरी तरफ रुख करना शुरू कर दिया है। प्रवासी पक्षियों की पहचान के लिए इन्हें छल्ले पहनाने और ट्रांसमीटर की सहायता से इनके प्रवास की गतिविधियों को समझने की कोशिश हुई है लेकिन अध्ययन सीमित ही रहा है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने कुछ प्रयास किए हैं लेकिन सरकारी प्रयास शून्य ही रहा है। प्रवासी पक्षी हिमालय के पार मध्य एवं उत्तरी एशिया एवं पूर्वी-उत्तरी यूरोप से बिहार आते हैं। लद्दाख, चीन, तिब्बत, जापान, रूस, साइबेरिया, अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान, मंगोलिया, पश्चिमी जर्मनी, हंगरी एवं भूटान से आकाश के रास्ते आने वाले इन पक्षियों पर खतरे बढ़ते ही रहे हैं। मां जानकी की प्राकट्य स्थली सीतामढ़ी में खास जगहों पर ही इन खूबसूरत पक्षियों का कलरव सर्दियों में सुनाई देता है। सुरसंड रानी पोखर, सिसौदिया मन के अलावा पंथापाकड़ पोखर के आस-पास हरियल चकवा, लालसर पक्षियों के समूह मछली का शिकार करने के लिए कुछ दिनों के लिए अपना डेरा जमाते हैं। लेकिन अब मेहमान पक्षी अपने जोड़े से बिछुड़ने के बाद ही स्वदेश पहुंच पाता है। पक्षियों के सौदागार इन्हें अपने जाल में फंसाकर हजारों की कमाई प्रति वर्ष जरूर कर लेता है।
वन्य एवं पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना के द्वारा इसे वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत निषिध क्षेत्र घोषित किया। पिछले दो दशकों में कई आश्वासनों के बावजूद और इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित के बाद भी आधारभूत संरचना विकसित नहीं की गई। ठंड का मौसम आते ही यहां देश-विदेश से लालसिर वाले ग्रीन, पोर्टचाई स्पाटबिल, टीलकूट, बहूमणि हंस, लालसर, श्वंजन, चाहा, क्रेन, आइविस, डक, अंधिगा आदि पक्षी आते हैं जो तीन-चार माह रहते हैं। लेकिन इसमें चोरी छिपे अंधिगा, लालसर, चाहा का शिकार होता रहता है। कई जगहों पर चिड़ीमार का गिरोह सक्रिय है जो इन्हें मार-पकड़कर बेचते हैं। हालांकि एक-दो बार जिंदा पक्षी पकड़ने वाले के खिलाफ कार्रवाई हुई है। जनवरी में नए साल की शुरूआत पर जितनी तेजी से पक्षी आते हैं उतने ही तेजी से चंद पैसों के लिए ये पाहुन (विदेशी) पक्षी मार गिराए भी जाते हैं। जगह-जगह वन विभाग ने पक्षी शिकार नहीं करने के बोर्ड आदि लगाए है लेकिन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत बनी हुई है। पश्चिमी चंपारण जिला वाल्मीकि व्याघ्र आश्रयणी एवं जंगल व नदियों के प्रचुरता के मामले में जाना जाता है। चंपारण में कई ऐसी जगहें हैं जहां सर्दी के मौसम आरंभ होते ही प्रवासी पक्षियों का आना आरंभ हो जाता है। हां यह बात भी गौर करनेवाली है कि यहां के निवासी भी इन पक्षियों को मेहमान की तरह सम्मान देते हैं। हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने नरकटियागंज के केहुनिया गांव में स्थित चिड़िअहवा तालाब पर आकर रह रहे प्रवासी पक्षियों के झुंड को देखकर खुशी जाहिर करते हुए ग्रामीणों को एक समिति भी गठित करने का सुझाव दिया।
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