पेड़ों, पत्थरों से लेकर जानवरों तक को पूजने वाला भारत अपने बुजुर्गों का ही ख्याल नहीं रख रहा. कभी मां बाप को भगवान मानने वाले भारत के बेटे अब उन्हें बोझ मानने लगे हैं और उन पर अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.भारत के गैर सरकारी संगठन हेल्प एज इंडिया के सर्वे के अनुसार 23 फीसदी बुजुर्ग अत्याचार के शिकार हैं. ज्यादातर मामलों में बुजुर्गों को उनकी बहू सताती है. 39 फीसदी मामलों में बुजुर्गो ने अपनी बदहाली के लिए बहुओं को जिम्मेदार माना है.सताने के मामले में बेटे भी ज्यादा पीछे नहीं. 38 फीसदी मामलों में उन्हें दोषी पाया गया है । बच्चे घर की रौनक होते हैं, वैसे ही घर के बुर्जुग भी घर की रौनक होते हैं। उन्होंने कहा कि बुजुर्गों के बिना घर अपनो के ही बच्चों के शिकार बुजुर्ग और परिवार के सभी सदस्यों का जीवन अधूरा है क्योंकि बुजुर्ग ही घर व परिवार के सच्चे मार्ग दर्शक हैं।
उन्होंने कहा कि बुजुर्गों के बिना युवा अच्छे संस्कारों से वंचित रह जाते हैं तथा कभी भी उन्नति नहीं कर पाते हैं मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: - इस पंक्ति को बोलते हुए हमारा शीष श्रद्धा से झुक जाता है और सीना गर्व से तन जाता है । यह पंक्ति सच भी है जिस प्रकार ईश्वर अदृश्य रहकर हमारे जो परिवार में सर्वोपरि थे। और परिवार की शान समझे जाते थे आज उपेक्षित, बेसहारा और दयनीय जीवन जीने को मजबूर नजर आ रहे है यहां तक कि तथा कथित पढ़े लिखे लोग जो अपने आप को आधुनिक मानते है , वो आपकी मां ही है जिसने नौ माह तक अपने खून के एक एक कतरे को अपने शरीर से अलग करके आपका शरीर बनाया है और स्वयं गीले मे सोकर आपको सूखे में सोती है, इन्ही मां-बाप ने अपना खून पसीना एक करके आपको पढ़ाया-लिखाया, पालन-पोषण किया अपनी इच्छाओं को खत्म कर करके आपकी छोटी से छोटी एवं बड़ी से बड़ी सभी जरूरतों को पूरा किया है। कुछ मां-बाप तो अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य के खातिर अपने भोजन खर्च से कटौती कर करके उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को विदेश भेजते रहे। उन्हें नही मालूम था कि बच्चे अच्छा कैरियर हासिल करने के बाद उनके पास तक नही आना चाहेंगे। वे मां-बाप तो अपना यह दर्द किसी को बता भी नही पाते। यह आपके पिता ही है जिन्होंने अपनी पैसा-पैसा करके जोड़ी जमा पूंजी और भविष्य निधि आपके मात्र एक बार कहने पर आप पर खर्च कर दी। आज स्वयं पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो गये। तिनका-तिनका जोड़कर आपके लिए आशियाना बनाया और उन्हे अकेला छोड़कर अपनी इच्छा की जगह जाकर उन्हे दण्ड दे रहे है। आपने कभी सोचा है कि मां-बाप ने यह सब क्यों किया।
मां-बाप जो मुकाम स्वयं हासिल नही कर पाये उन्हें आपके माध्यम से पूरा करना चाहते है लेकिन बच्चे उनका यह सपना चूर-चूर कर देते हैं। बुजुर्ग शब्द दिमाग में आते ही उम्र व विचारों से परिपक्व व्यक्ित की छवि सामने आती है । बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना है जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा निर्देश करते हैं । बुजुर्ग घर का मुखिया होता है इस कारण वह बच्चों, बहुओं, बेटे-बेटी को कोई गलत कार्य या बात करते हुए देखते हैं तो उन्हें सहन नहीं कर पाते हैं और उनके कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं जिसे वे पसंद नहीं करते हैं । वे या तो उनकी बातों को अनदेखा कर देते हैं या उलटकर जवाब देते हैं । जिस बुजुर्ग ने अपनी परिवार रूपी बगिया के पौधों को अपने खून पसीने रूपी खाद से सींच कर पल्लवित किया है, उनके इस व्यवहार से उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है । बुजुर्गों में चिड़चिड़ाहट उनकी उम्र का तकाजा है । वे गलत बात बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, इसलिए परिवार के सदस्यों को उनकी भावनाओं व आवश्यकता को समझकर ठंडे दिमाग से उनकी बात सुननी चाहिए । कोई बात नहीं माननी हो तो, मौका देखकर उन्हें इस बात के लिए मना लेना चाहिए कि यह बात उचित नहीं है । सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई ऐसी बात न करें जो उन्हें बुरी लगे । हम अपने आस-पास किसी ना किसी बुजुर्ग महिला या पुरूष पर अत्याचार होते देखकर, उनका निजी मामला है ऐसा कहकर क्या अपनी मौन स्वीकृति नही दे रहे है ? आज कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है यह अच्छी बात है लेकिन इसका तात्पर्य यह नही है कि बुजुर्ग मां-बाप आपके मात्र चौकीदार और आया बनकर रह जायें। बुजुर्ग महिला अपने पोते-पोतियों की दिन भर सेवा करे, शाम को बेटे-बहू के आॅफिस से आने पर उनकी सेवा करे। क्या इसी दिन के लिए पढ़ी-लिखी कामकाजी लड़की को वह अपनी बहू बनाती है। लेकिन क्या करे मां का बड़ा दिल वाला तमगा जो उसने लगा रखा है सभी दर्द को हॅसते-हॅसते सह लेती है। कभी उसके दिल के कोने में झांक कर देखों छिपा हुआ दर्द नजर आ जायेगा। यदि आप अपना कर्ज चुकाना चाहते है तो दिल के उस कोने का दर्द अपने प्यार से मिटा दो। बुजुर्ग सिर्फ इज्जत से जीना चाहते हैं। विश्व में बुजुर्गों की संख्या लगभग 60 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रत्येक पांच में से एक बुजुर्ग अकेले या अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है, अधिकतर बुजुर्ग डिप्रेशन, आर्थराइटिस, डायबिटीज एवं आंख संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हैं और महीने में औसतन 11 दिन बीमार रहते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन बुजुर्गों को होती है, जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। हेल्पेज इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट बताती है कि देश के लगभग 10 करोड़ बुजुर्गों में से पांच करोड़ से भी ज्यादा बुजुर्ग आए दिन भूखे पेट सोते हैं। देश की कुल आबादी का आठ फीसदी हिस्सा अपने जीवन की अंतिम वेला में सिर्फ भूख नहीं, बल्कि कई तरह की समस्याओं का शिकार है। भारत में बुजुर्गों का मान−सम्मान तेजी से घटा है। यह हमारे सामाजिक−सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। हमारे देश में बुजुर्ग को परिवार के मुखिया की मान्यता हासिल है। आज भी हर शुभ कार्य में बुजुर्ग को याद किया जाता है और उनके आशीर्वाद एवं इजाजत से ही शुभ कार्य को आगे बढ़ाया जाता है। श्रवण कुमार का उदाहरण हमारे सामने है। जिसने अपने माता−पिता की सेवा करते−करते ही अपनी जान गंवा दी। हमारी सामाजिक−सांस्कृतिक मयार्दा तार−तार होकर रह गई है। इस बेरहम स्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?भारत में 60 साल से अधिक आयु के व्यक्ति को बुजुर्ग अथवा वरिष्ठ नागरिक का दर्जा हासिल है। इस आयु के व्यक्ति को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। अस्सी साल का बुजुर्ग असहाय की श्रेणी में आ जाता है।
विश्व में वर्तमान में 80 साल से अधिक उम्र के करीब 16 फीसदी लोग हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में बुजुर्गों की संख्या लगभग दस करोड़ है। दरअसल नई पीढ़ी आत्मग्रस्त होती जा रही है। बसों में वे सीनियर सिटिजंस को जगह नहीं देते। बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे हैं क्योंकि युवा पीढ़ी उन्हें लेकर बहुत उदासीन हो रही है , मगर हमें भी अब इन्हीं सबके बीच जीने की आदत पड़ गई है। सीनियर सिटिजंस की तकलीफ की एक बड़ी वजह युवाओं का उनके प्रति कठोर बर्ताव है। लाइफ बहुत ज्यादा फास्ट हो गई है। इतनी फास्ट की सीनियर सिटिजंस के लिए उसके साथ चलना असंभव हो गया है। एक दूसरी परेशानी यह है कि युवा पीढ़ी सीनियर सिटिजंस की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं- घर में भी और बाहर भी। दादा-दादियों को भी वे नहीं पूछते, उनकी देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है। जिंदगी की ढलती थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मानवीय संबंध परस्पर प्रेम और विश्वास पर आधारित होते हैं। जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है, लेकिन उसकी दिक्कत यह होती है कि युवा पीढ़ी के पास उसकी बात सुनने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होता। वृद्धजनों के मानवाधिकारों का देश में आदर किया जा रहा है लेकिन हालात बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और वृद्धजनों के मानवाधिकारोंके उल्लंघन की घटनाएं अब सामने आने लगी हैं। वृद्धजनों के साथ लोग अकसर बात करते हैं लेकिन पुरानी और युवा पीढ़ी के बीच फासलाबढ़ता जा रहा है क्यांकि परिवार में उनका रिश्ता मजबूत नहीं है। वृद्धजन सेवानिवृत्ति के बाद भी कमा सकते हैं लेकिन उनके लिए काम केअवसर नहीं हैं। लोग उन्हें बहुत अनुभवी, ज्ञानवान और बुद्धिमान मानते हैं लेकिन उनके प्रदर्शन पर संदेह करते हैं। बूढ़ा तो एक दिन सबकोहोना है इसलिए वृद्धजनों को आदरणीय श्रेणी में वगीर्कृत किया जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से अधिकांश वृद्धजन खुद को असुरक्षितमहसूस करते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली का टूटना इसका मुख्य कारण है। वृद्धजनों के साथ भेदभाव होना आम बात है लेकिन वे शायद ही कभी इसकी शिकायत करते हैं और इसे सामाजिक परिपाटी मानतेहैं। कार को वृद्धजनों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर ध्यानदेना चाहिए और साथ ही समाज को भी इसकी कुछ व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वृद्धजन परेशानीमुक्त जीवन जी सकें। लोगों में वृद्धजनोंके लिए कानूनी प्रावधानों की जानकारी बढ़ रही है लेकिन अब भी कुछ लोगों को कानूनी प्रणाली पर संदेह है। बुढ़ापे में स्वास्थ्य देखभाल सबसेअधिक जरूरी है इसलिए इस बारे में सरकार और अन्य संबंधित हितधारकों को तुरंत कदम उठाने चाहिए। देश में वृद्धजनों के मानवअधिकारों का आदर किया जा रहा है लेकिन स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है और वृद्धजनों के मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं उनके साथदुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि परिवार में आरंभ से ही बुजर्गों के प्रति अपनेपन का भाव विकसित किया जाए। बच्चों में इस भाव को जगाने के साथ-साथ स्वयं भी इस बात को याद रखें किआप वृद्धावस्था में अपने साथ कैसा व्यवहार चाहते हैं, वही अपने घर-परिवार के व समाज के वृद्धों के साथ करें। बच्चों को भी यही संस्कार दें। विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां आयु को आशीर्वाद व शुभकामनाओं के साथ जोड़ा गया है। ऐसे में वृद्धजनों की स्थितिपर नई सोच भावनात्मक सोच विकसित करने की जरूरत है ताकिहमारे ये बुजुर्ग परिवार व समाज में खोया सम्मान पा सकें और अपनापन महसूस कर सकें ।
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