भारत बना समलैंगिकता का 125 वां देश
उच्चतम न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 125 (रिपीट) (125) अन्य देशों के साथ जुड़ गया, जहां समलैंगिकता वैध है। लेकिन दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है। उनमें 45 वे देश भी हैं जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भादंसं की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है। जिन कुछ देशों समलैंगिक संबंध वैध ठहराये गये हैं उनमें अर्जेंटीना, ग्रीनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, आईसलैंड, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, अमेरिका, ब्राजील, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा शामिल हैं। समलैंगिकता अब अपराध नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा ३७७ को निरस्त कर दिया है। गौरतलब है इस मसले पर कोर्ट ने जुलाई में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और इसपर अपना निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने समलैंगिकता को अपराध बतानेवाली धारा को खत्म करने का फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद अब समलैंगिकता अपराध नहीं रहेगी। देश भर इस मसले पर चर्चा रही है। जहाँ कुछ लोग इसे अनैतिक बताते रहे हैं वहीं कुछ इसे लोगों की मर्जी पर छोड़ देने के हक में रहे थे। अब कोर्ट का फैसला आने के बाद साफ हो गया है। उच्चतम न्यायालय ने एकमत से अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। ऐसे यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान से संविधान में प्रदत्त समता और गरिमा के अधिकार का हनन होता है। शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं। संविधान पीठ ने लैंगिक रूझान को ‘‘जैविक घटना और ‘‘स्वाभाविक’’ इस आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव से मौलिक अधिकारों का हनन होता है। न्यायालय ने कहा, नैतिकता को सामाजिक नैतिकता की वेदी पर शहीद नहीं किया जा सकता और कानून के शासन के अंतर्गत सिर्फ सांविधानिक नैतिकता की अनुमति दी जा सकती है।‘‘पीठ ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समाज के सदस्यों को परेशान करने के लिये धारा 377 का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है जिसकी परिणति भेदभाव में होती है। न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा, जहां तक यह दो वयस्कों, चाहें समलैंगिक (आदमी और आदमी), विषमलैंगिक (आदमी और महिला) या लेस्बियन (स्त्री और स्त्री) के बीच सहमति से अप्राकृतिक यौन रिश्तों को दंडित करती है, सांविधानिक नहीं मानी जा सकती। हालांकि, यदि कोई, हमारा तात्पर्य स्त्री और पुरूष दोनों, किसी जानवर के साथ किसी भी तरह की यौन क्रिया में संलिप्त होते हैं तो धारा 377 का यह पहलू सांविधानिक है और यह इस कानून में यथावत दंडनीय अपराध बना रहेगा। धारा 377 में वर्णित कोई भी क्रिया यदि दो वयस्कों में से किसी एक की सहमति के बगैर की जाती है तो यह धारा 377 के तहत दंडनीय होगा। शीर्ष अदालत ने हालांकि अपनी व्यवस्था में कहा कि धारा 377 में प्रदत्त, पशुओं और बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान यथावत रहेंगे। धारा 377 अप्राकृतिक अपराधों से संबंधित है जो कोई भी स्वेच्छा से प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ गुदा मैथुन करता है तो उसे उम्र कैद या फिर एक निश्चित अवधि के लिये कैद जो दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा होगी और उसे जुमार्ना भी देना होगा। न्यायालय ने कहा कि अदालतों को प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 125 (रिपीट) (125) अन्य देशों के साथ जुड़ गया, जहां समलैंगिकता वैध है। लेकिन दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है। उनमें 45 वे देश भी हैं जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भादंसं की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है। जिन कुछ देशों समलैंगिक संबंध वैध ठहराये गये हैं उनमें अर्जेंटीना, ग्रीनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, आईसलैंड, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, अमेरिका, ब्राजील, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा शामिल हैं। समलैंगिकता अब अपराध नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा ३७७ को निरस्त कर दिया है। गौरतलब है इस मसले पर कोर्ट ने जुलाई में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और इसपर अपना निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने समलैंगिकता को अपराध बतानेवाली धारा को खत्म करने का फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद अब समलैंगिकता अपराध नहीं रहेगी। देश भर इस मसले पर चर्चा रही है। जहाँ कुछ लोग इसे अनैतिक बताते रहे हैं वहीं कुछ इसे लोगों की मर्जी पर छोड़ देने के हक में रहे थे। अब कोर्ट का फैसला आने के बाद साफ हो गया है। उच्चतम न्यायालय ने एकमत से अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। ऐसे यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान से संविधान में प्रदत्त समता और गरिमा के अधिकार का हनन होता है। शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं। संविधान पीठ ने लैंगिक रूझान को ‘‘जैविक घटना और ‘‘स्वाभाविक’’ इस आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव से मौलिक अधिकारों का हनन होता है। न्यायालय ने कहा, नैतिकता को सामाजिक नैतिकता की वेदी पर शहीद नहीं किया जा सकता और कानून के शासन के अंतर्गत सिर्फ सांविधानिक नैतिकता की अनुमति दी जा सकती है।‘‘पीठ ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समाज के सदस्यों को परेशान करने के लिये धारा 377 का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है जिसकी परिणति भेदभाव में होती है। न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा, जहां तक यह दो वयस्कों, चाहें समलैंगिक (आदमी और आदमी), विषमलैंगिक (आदमी और महिला) या लेस्बियन (स्त्री और स्त्री) के बीच सहमति से अप्राकृतिक यौन रिश्तों को दंडित करती है, सांविधानिक नहीं मानी जा सकती। हालांकि, यदि कोई, हमारा तात्पर्य स्त्री और पुरूष दोनों, किसी जानवर के साथ किसी भी तरह की यौन क्रिया में संलिप्त होते हैं तो धारा 377 का यह पहलू सांविधानिक है और यह इस कानून में यथावत दंडनीय अपराध बना रहेगा। धारा 377 में वर्णित कोई भी क्रिया यदि दो वयस्कों में से किसी एक की सहमति के बगैर की जाती है तो यह धारा 377 के तहत दंडनीय होगा। शीर्ष अदालत ने हालांकि अपनी व्यवस्था में कहा कि धारा 377 में प्रदत्त, पशुओं और बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान यथावत रहेंगे। धारा 377 अप्राकृतिक अपराधों से संबंधित है जो कोई भी स्वेच्छा से प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ गुदा मैथुन करता है तो उसे उम्र कैद या फिर एक निश्चित अवधि के लिये कैद जो दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा होगी और उसे जुमार्ना भी देना होगा। न्यायालय ने कहा कि अदालतों को प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है।