Wednesday, 12 September 2018

भारत बना समलैंगिकता का 125 वां देश

 भारत बना समलैंगिकता का 125 वां देश
उच्चतम न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 125 (रिपीट) (125) अन्य देशों के साथ जुड़ गया, जहां समलैंगिकता वैध है। लेकिन दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है। उनमें 45 वे देश भी हैं जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है। उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भादंसं की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है। जिन कुछ देशों समलैंगिक संबंध वैध ठहराये गये हैं उनमें अर्जेंटीना, ग्रीनलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, आईसलैंड, स्पेन, बेल्जियम, आयरलैंड, अमेरिका, ब्राजील, लक्जमबर्ग, स्वीडन और कनाडा शामिल हैं। समलैंगिकता अब अपराध नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा ३७७ को निरस्त कर दिया है। गौरतलब है इस मसले पर कोर्ट ने जुलाई में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और इसपर अपना निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने समलैंगिकता को अपराध बतानेवाली धारा को खत्म करने का फैसला सुनाया है। इस फैसले के बाद अब समलैंगिकता अपराध नहीं रहेगी।  देश भर इस मसले पर चर्चा रही है।  जहाँ कुछ लोग इसे अनैतिक बताते रहे हैं वहीं कुछ इसे लोगों की मर्जी पर छोड़ देने के हक में रहे थे।  अब कोर्ट का फैसला आने के बाद साफ हो गया है। उच्चतम न्यायालय ने एकमत से अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। ऐसे यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान से संविधान में प्रदत्त समता और गरिमा के अधिकार का हनन होता है। शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है।  पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं। संविधान पीठ ने लैंगिक रूझान को ‘‘जैविक घटना और ‘‘स्वाभाविक’’ इस आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव से मौलिक अधिकारों का हनन होता है। न्यायालय ने कहा, नैतिकता को सामाजिक नैतिकता की वेदी पर शहीद नहीं किया जा सकता और कानून के शासन के अंतर्गत सिर्फ सांविधानिक नैतिकता की अनुमति दी जा सकती है।‘‘पीठ ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समाज के सदस्यों को परेशान करने के लिये धारा 377 का एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है जिसकी परिणति भेदभाव में होती है। न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा,  जहां तक यह दो वयस्कों, चाहें समलैंगिक (आदमी और आदमी), विषमलैंगिक (आदमी और महिला) या लेस्बियन (स्त्री और स्त्री) के बीच सहमति से अप्राकृतिक यौन रिश्तों को दंडित करती है, सांविधानिक नहीं मानी जा सकती। हालांकि, यदि कोई, हमारा तात्पर्य स्त्री और पुरूष दोनों, किसी जानवर के साथ किसी भी तरह की यौन क्रिया में संलिप्त होते हैं तो धारा 377 का यह पहलू सांविधानिक है और यह इस कानून में यथावत दंडनीय अपराध बना रहेगा। धारा 377 में वर्णित कोई भी क्रिया यदि दो वयस्कों में से किसी एक की सहमति के बगैर की जाती है तो यह धारा 377 के तहत दंडनीय होगा। शीर्ष अदालत ने हालांकि अपनी व्यवस्था में कहा कि धारा 377 में प्रदत्त, पशुओं और बच्चों से संबंधित अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान यथावत रहेंगे। धारा 377 अप्राकृतिक अपराधों से संबंधित है  जो कोई भी स्वेच्छा से प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ गुदा मैथुन करता है तो उसे उम्र कैद या फिर एक निश्चित अवधि के लिये कैद जो दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा होगी और उसे जुमार्ना भी देना होगा। न्यायालय ने कहा कि अदालतों को प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है।


Friday, 7 September 2018

विडंबना: भारत में शिक्षा का बाजारीकरण

विडंबना: भारत में शिक्षा का बाजारीकरण
शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी देश या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका होती है, कहा जाए तो शिक्षक समाज का आइना होता है। हिन्दू धर्म में शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भव: यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरुप दिया जाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। गुरु या शिक्षक का संबंध केवल विद्यार्थी को शिक्षा देने से ही नहीं होता बल्कि वह अपने विद्यार्थी को हर मोड़ पर उसको राह दिखाता है और उसका हाथ थामने के लिए हमेशा तैयार रहता है एक शिक्षक या गुरु द्वारा अपने विद्यार्थी को स्कूल में जो सिखाया जाता है या जैसा वह सीखता है, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है जैसा वह अपने आसपास होता देखते हैं। इसलिए एक शिक्षक या गुरु ही अपने विद्यार्थी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है जो हमें गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है यहां पर शिक्षक अपने शिक्षार्थी को ज्ञान देने के साथ-साथ गुणवत्तायुक्त शिक्षा भी देते हैं,किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दब कर रह जायेगी बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को भी अच्छी शिक्षा नीति में तब्दील कर देता है।शिक्षकों द्वारा प्रारंभ से ही पाठ्यक्रम के साथ ही साथ जीवन मूल्यों की शिक्षा भी दी जाती है। शिक्षा हमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहारकुशलता और योग्यता प्रदान करती है। शिक्षक को ईश्वर तुल्य माना जाता है। आज भी बहुत से शिक्षक शिक्षकीय आर्दशो पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की स्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ ऐसे भी शिक्षक हैं जो शिक्षक और शिक्षा के नाम को कलंकित कर रहे हैं। और ऐसे शिक्षकों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है, जिससे एक निर्धन शिक्षार्थी को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है। धन के अभाव से अपनी पढ़ाई छोड़नी पडती है। प्राचीन समय में छात्र गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वहां गुरु छात्र को संस्कारित बनाता था लेकिन आधुनिक जीवन में लोगों के पास शायद विकल्प कम रह गए हैं और ये कोचिंग संस्थान इसी का फायदा उठाते हैं। शिक्षा को व्यवसाय बनाकर  उसका बाजारीकरण किया जा रहा है। निजी कोचिंग सैंटर हर गली, मोहल्ले और सोसायटी में सभी को झूठे प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा रहे हैं और खुल्लम-खुल्ला शिक्षा  के नाम पर सौदेबाजी कर रहे हैं। मजबूर और असहाय अभिभावक विकल्प खोजते-खोजते उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंस जाते हैं जिसका निजी संस्थान भरपूर लाभ उठा रहे हैं। कई तो ऐसे पूंजीपति लोग देखने में आते हैं जिनका शिक्षा से कोसों तक कोई नाता नहीं होता लेकिन उन्होंने अपने धन और ऐश्वर्य के बल पर इन विद्या मंदिरों को सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने का साधन बना डाला है। आज यह शिक्षा का व्यापारीकरण नहीं तो और क्या है?भारत का शिक्षातंत्र दुनिया का सबसे बड़ा तंत्र है। भारत में प्रथम मॉडर्न विश्वविद्यालय 1857 में स्थापित हुआ और चीन में 1895 में। आज चीन की शिक्षा स्थिति क्या है और भारत की क्या। भारत में इस वक्त आठ सौ विश्वविद्यालय एवं 43 हजार कॉलेज हैं। बावजदू इसके दुनिया के प्रथम दो सौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी नहीं। हम यूजी और पीजी में छात्रों को जो डिग्रियां बांट रहे हैं उनमें से केवल नौ फीसदी ही रोजगार पाने लायक हैं। आज भारत में 18-24 वर्ष के 14 करोड़ युवा उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन इनमें प्रवेशित मात्र 24 फीसदी ही होते हैं। भारतीय मूल्यों को प्रतिस्थापित करने के लिए आज उच्च शिक्षा में शोध की गुणवत्ता में सुधार की जरुरत है। सत्र 2017-18 में देश में 35 हजार पीएचडी हुईं। लेकिन अधिकांश में गुणवत्ता गायब है।शिक्षा का जिस तरह व्यवसायीकरण हो रहा है और इसके लिए मोटी फीस वसूली जा रही है, उसमें शिक्षा के मूल्यों की अपेक्षा करना मुश्किल है। स्किल्ड नहीं होने से 70 फीसदी स्टूडेंट आज रोजगार से वंचित हैं। छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षकों में भी मूल्यपरकता होना जरुरी है। क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डॉ.राजीव गुप्ता ने कहा कि भारत में हर वर्ष एक करोड़ छात्र स्नातक की डिग्री लेकर निकल रहे हैं।
 ज्ञान का संग्रहण और उसका कुशलतम उपयोग ही शिक्षा है। अब पाठ्यक्रम में केवल सैद्धांतिक पक्ष से ही काम नहीं चलेगा बल्कि व्यवहारिक पक्ष को भी उसका हिस्सा बनना होगा।-शिक्षा के बाजारीकरण का अर्थ है शिक्षा को बाजार में बेचने-खरीदने की वस्तु में बदल देना अर्थात शिक्षा आज समाज में मात्र एक वस्तु बन कर रह गई है और स्कूलों को मुनाफे की दृष्टि से चलाने वाले दुकानदार बन चुके हैं तथा इस प्रकार की दुकानें ही छात्रों के भविष्य को बर्बाद कर रही हैं। अभिभावक भी शिक्षा की इन दुकानों की चकाचौंध को देख कर उनमें फंसते जा रहे हैं परन्तु अंत में जब तक अभिभावकों को इन दुकानों की वास्तविकता का पता चलता है तब तक वे अपना धन और समय गंवा चुके होते हैं।  स्कूलों में बच्चों की गुणवत्ता की अपेक्षा बच्चों की संख्या पर विशेष ध्यान दिया जाता है जोकि सर्वथा अनुचित है। नए शैक्षिक सत्र के आरंभ में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर स्कूल प्रशासक अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन कुछ समय के पश्चात जब वास्तविकता सामने आती है तो वे मजबूरन कुछ नहीं कर सकते और अपने बच्चों के लिए स्कूल प्रशासन की उचित-अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।आज शिक्षा की आड़ में पैसा कमाना ही मूल उद्देश्य बन कर रह गया है। महंगाई और बाजारीकरण के मौजूदा दौर में छात्र इस असमंजस में फंसा हुआ है कि वह कमाने के लिए पढ़े या पढने के लिए कमाए। बाजारीकरण की दीमक पूरी शिक्षा व्यवस्था को खोखला करती जा रही है। आज आवश्यकता है कि इस विषय में सरकार कुछ ठोस कदम उठाए तथा शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश की प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारर्दशता लाने का प्रयास करे क्योंकि किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव हो सकता है जब वहां की अधिकतम जनसंख्या शिक्षित और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो।  यह वही भारत है जो अपनी संस्कृति के कारण विश्व भर में विख्यात है और जहां दूसरे देशों से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति की पहचान हमारी शिक्षा का नैतिक मूल्य स्तर दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।आजकल शहरों में तो क्या, गांवों में भी शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। यदि आंकड़ों को देखा जाए तो सरकारी स्कूलों में केवल निर्धन वर्ग के लोगों के बच्चे ही पढने के लिए आते है, क्योंकि निजी शिक्षा संस्थाओं के फीस के रूप में बड़ी-बड़ी रकमें वसूली जाती है, जिन्हें केवल पैसे वाले ही अदा कर पाते है। आज अच्छी और उच्च शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है। निजी शिक्षण संस्थानों के संचालक मनमर्जी की फीस वसूल कर रहे है या यूँ कहें शिक्षा का बाजार लगाकर लूट मचा रखी है। जहाँ एक तरफ जितनी स्कूल की फीस बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ उतना ही शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की इस सबके लिये कही ना कही हम सब भी जिम्मेदार हैं।
शिक्षा के ऐसे हालातों को देखते हुए सरकार को कुछ सख्त कदम उठाना चाहिये और शिक्षा का मौलिक आधार प्रत्येक बच्चे तक पहुँचाना चाहिये। हमारी सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि वो आम जनता को क्यों इस प्रकार लुटने दे रही है। इन व्यवसायिक निजी स्कूलों के स्तर की ही शिक्षा मिशनरी स्कूल (मसलन सेंट पॉल, कॉन्वेन्ट, सेंट जेवियर, सेंट रैफल, सेंट नारबर्ट आदि) भी दे रहे हैं और अपेक्षाकृत काफी कम फीस में, तो कुछ स्कूलों को ऐसा अधिकार क्यों कि वो बच्चों के भोले-भाले अभिभावकों को शिक्षा के नाम पर बेवकूफ बना कर उनसे मनमाना फीसवसूल करें। इस मनमानी को रोकने के लिए सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा का व्यवसायीकरण पर रोक लगाये। निजी शिक्षण संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा तय की जानी चाहिए तथा इस फीस इतनी हो कि निर्धन वर्ग के बच्चे भी उन शिक्षण संस्थाना में शिक्षा ग्रहण कर सके, क्योंकि भारत देश की अधिकतर आबादी ग्रामीण आंचल में बसती है, जो निर्धन वर्ग में आती है।

Saturday, 1 September 2018


केरल में आई सदी की सबसे विनाशकारी बाढ़ से अब तक 370 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लाख लोग बेघर हो चुके हैं। हालांकि, बारिश धीमी होने और जलस्तर घटने से अब राज्य में संक्रामक बीमारियों के प्रकोप का खतरा मंडराने लगा है। हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने कहा कि बाढ़ की शुरूआत के बाद संक्रामक बीमारियों और उनके संचरण का प्रकोप दिन, हफ्ते या महीने के भीतर हो सकता है। बाढ़ के दौरान और बाद में सबसे आम स्वास्थ्य जोखिमों में से एक है, जल स्रोतों का प्रदूषण। ठहरा हुआ पानी मच्छरों के लिए प्रजनन स्थल बन जाता है, इस प्रकार वेक्टर-जनित बीमारियों की संभावना में वृद्धि होती है। बीमारियों में जैसे लेप्टोस्पायरोसिस एक तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो आदमियों और जानवरों दोनों को प्रभावित करता है। आमतौर पर ये रोग पालतू जानवरों जैसे गाय, भैंस, बकरी, मुर्गों, कुत्तों और चूहों से फैलता है। आमतौर पर इस रोग के लक्षण जल्दी दिखाई नहीं देते हैं मगर बाढ़ और पानी आदि के प्रभाव में ये रोग तेजी से एक से दूसरे व्यक्ति या जानवर में फैलते हैं। आमतौर पर दूषित पानी और जानवरों के मल मूत्र के संपर्क में आने से फैलने वाला लेप्टोस्पायरोसिस रोग जानलेवा नहीं होता है मगर ये किडनी को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। 
बैक्टीरिया की वजह से होने वाली बीमारी हैजा बाढ़ के दौरान फैलने वाली सबसे घातक बीमारी होती है। इसके कारण उल्टी, दस्त और निर्जलीकरण यानी डिहाइड्रेशन हो जाता है। कई गंभीर मामलों में हैजा जानलेवा भी हो सकता है। दरअसल हैजा एक खास तरह के बैक्टीरिया के कारण फैलता है। यह मुंह और मलमार्ग के माध्यम से जोर पकड़ता है। इससे प्रभावित लोगों के मल में बड़ी संख्या में इस बीमारी के जीवाणु पाए जाते हैं। इस मल के बाढ़ के पानी में मिल जाने की स्थिति में इसके कारण बड़े पैमाने पर संक्रमण फैल जाता है और बहुत तेजी से लोग हैजा के शिकार होने लगते हैं। बाढ़ के समय में शरण स्थल के शिविरों में पहले ही साफ-सफाई की कमी होती है, जिससे तीव्र संक्रमणशील यह बीमारी जल्दी ही महामारी का रूप ले लेती है। बाढ़ के दौरान अन्य बीमारियां- बाढ़ के दौरान कई तरह के जलजनित रोगों जैसे मियादी बुखार, हैजा और हेपेटाइटिस ए, लेप्टोस्पायरोसिस आदि का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियां जैसे मलेरिया, डेंगू बुखार, पीतज्वर और वेस्ट नाइल फीवर आदि का भी खतरा बहुत ज्यादा होता है। बाढ़ के दौरान बरतें ये सावधानियां- बाढ़ के पानी के साथ सीधे संपर्क में न आने की पूरी कोशिश करें तथा कभी भी इसका सेवन न करें। आमतौर पर नलके का पानी बाढ़ से अप्रभावित होता है और पीने के लिए सुरक्षित होता है। अगर आपको पानी में जाना ही पड़े, तो रबड़ के जूते और या वाटर प्रूफ दस्ताने पहनें। नियमित रूप से अपने हाथों को धोएं, विशेष रूप से खाने से पहले। अगर पानी उपलब्ध नहीं है, तो हैंड  सेनिटाइजर या वेट वाइप का प्रयोग करें। अगर कहीं कट या छिल गया हो, तो वहां वाटरप्रूफ  प्लास्टर पहनें। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि केंद्र ने बाढ़ प्रभावित केरल में किसी तरह की महामारी को रोकने के लिए 3,757 मेडिकल शिविर लगाए हैं. बाढ़ का पानी घटने के साथ माहौल संक्रामक बीमारियों के अनुकूल हो जाएगा। राज्य को दैनिक निगरानी के लिए कहा गया है जिससे किसी भी प्रकोप के शुरूआती संकेतों का पता लगाया जा सके.संक्रामक बीमारियों, उनकी रोकथाम व नियंत्रण, सुरक्षित पेयजल, सफाई के कदम, वेक्टर नियंत्रण व अन्य चीजों पर राज्य के साथ स्वास्थ्य परामर्श साझा किया गया है। राज्य के स्वास्थ्य निदेशालय को आशंका है कि राज्य में पानी और हवा से होने वाली बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं। रुका पानी और मौजूदा मौसम बैक्टीरियों के तेजी से पनपने के लिए काफी अनुकूल है लेकिन इस नए खतरे से निपटना आसान नहीं होगा क्योंकि राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं चौपट हो गई हैं। कोच्चि के पास अलुवा में चिकनपॉक्स के लक्षण सामने आने के बाद तीन लोगों को अलग शिविर में रखा गया है।
 केरल में मॉनसून से पहले फरवरी में भी चिकनपॉक्स के काफी मामले देखे गए थे। जीका वाइरस के कारण भी हाल में केरल में कई लोगों की मौत का दावा किया गया था। चिकनपॉक्स के अलावा अधिकारियों को डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया और जानवरों के यूरिन और मल के सीधे संपर्क में आने से फैलने वाले संक्रामक रोगों के फैलने की भी आशंका है। बाढ़ से प्रभावित लोगों में डायरिया, हेपेटाइटिस, वायरल बुखार और सांस संबंधी संक्रमण फैलने का भी खतरा है। अगर इनमें से कोई भी बीमारी फैलती है तो उसे रोकना काफी चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि दो लाख से ज्यादा परिवार इस समय राहत शिविरों में रह रहे हैं। बीमारियों के फैलने खतरे को देखते हुए राज्य सरकार ने शिविरों से घरों को लौट रहे लोगों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिसमें बताया गया है कि पानी और खाने को लेकर क्या सावधानी बरतनी है। पानी गर्म न हो सके तो लोगों को क्लोरीनयुक्त पानी पीने को कहा गया है। इसके साथ ही लोगों को मरे हुए पक्षियों या जानवरों के अवशेषों को जमीन में गहरा गड्ढा खोदकर दफनाने को कहा गया है। अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि बोरवेल्स से पानी का सीधे इस्तेमाल न करें।

  कॉस्मोपॉलिटन शहर के कारण बड़े फिल्मकार मुंबई आकर बसे, आर्थिक राजधानी होने का भी फिल्म इंडस्ट्री को मिला लाभ ल्यूमियर ब्रदर्स ने 7 जुलाई 18...