Sunday, 17 February 2019

आतंकवाद पूरे विश्व के लिए नासूर है

आतंकवाद पूरे विश्व के लिए नासूर है

तंकवाद किसी एक व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र विशेष के लिए ही नहीं अपितु पूरी मानव सभ्यता के लिए कलंक है । हमारे देश मे ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे इसका जहर इतनी तीव्रता से फैल रहा है कि यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया तो यह पूरी मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएएफ के काफिले पर गुंरुवार की शाम में हुए आतंकी हमले में 44 जवान शहीद हो गए। पाकिस्‍तान में जड़ें जमा भारत में आतंक फौते रहे आतंकवादी संगठन 'जैश-ए-मोहम्मद' ने इस आत्‍मघाती हमले की जिम्‍मेदारी ली है। घटना के बाद पूरे देश में गम व गुस्‍से का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी गम व गुस्से के इजहार का सिलसिला जारी है, शाब्दिक अर्थों में आतंकवाद का अर्थ भय अथवा डर के सिद्‌धांत को मानने से है । दूसरे शब्दों में, भययुक्त वातावरण को अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति हेतु तैयार करने का सिद्धांत आतंकवाद कहलाता है । विश्व के समस्त राष्ट्र प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसके दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं । रावण के सिर की तरह एक स्थान पर इसे खत्म किया जाता है तो दूसरी ओर एक नए सिर की भाँति उभर आता है । यदि हम अपने देश का ही उदाहरण लें तो हम देखते हैं कि अथक प्रयासों के बाद हम पंजाब से आतंकवाद का समाप्त करने में सफल होते है तो यह जम्यू-कश्मीर, आसाम व अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रारंभ हो जाता है । पड़ोसी देश पाकिस्तान द्‌वारा भारत में आतकवाद को समर्थन देने की प्रथा तो निरंतर पचास वर्षो से चली आ रही है। हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है । यहाँ अनेक धर्मो के मानने वाले लोग निवास करते हैं । हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, ब्रहम समाजी, आर्य समाजी, पारसी आदि सभी धर्मो के अनुयाइयों को यहाँ समान दृष्टि से देखा जाता है तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं । कुछ बड़ी शक्तियां और पड़ोसी देश हमारे देश में अव्यवस्था फैलाने की कोशिश में लगे रहते हैं। यदि हमारा देश दो भागों में विभक्त हो गया तो वे बहुत प्रसन्न होंगे। कुछ समस्याएँ जम्मू-कश्मीर की हैं जिन्हे शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश हत्याएं जारी हैं। हमें आशा है की राजनीतिक शक्तियां इस समस्या का समाधान निकालेंगी।  आतंकवाद विश्वभर में फैला है, अभी कुछ दशकों में, उसने नए आयाम हासिल किए हैं और इसका कोई अंत नहीं है। जिस तरह से यह पिछले कुछ सालों से बढ़ रहा है, यह सीमाओं से परे है, हम सभी के लिए यह एक बड़ी चिंता का विषय है। हालांकि यह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेताओं द्वारा निंदित किया गया है, पर इसका कोई असर नहीं हुआ है, यह कई गुना बढ़ रहा है और इसके सबूत भी सभी जगह है।
 आतंकवादियों और उग्रवादियों ने अपने शत्रुओं को आतंकित करने के लिए सभी तरह के हथियारों और रणनीतियों का उपयोग किया है। वे बम विस्फोट करते हैं, राइफल्स, हथगोले, रॉकेट, लूटने वाले घरों, लूट के लिये बैंकों और कई धार्मिक स्थानों को नष्ट करते हैं, लोगों का अपहरण करते हैं, बसों और आगजनी और बलात्कार करते हैं, यहाँ तक कि बच्चों को भी नहीं छोड़ते हैं। देश में आतंकवाद के चलते पिछले पाँच दशकों में 50,000 से भी अधिक परिवार प्रभावित हो चुके हैं । कितनी ही महिलाओं का सुहाग उजड़ गया है । कितने ही माता-पिता बेऔलाद हो चुके हैं तथा कितने ही भाइयों से उनकी बहनें व कितनी ही बहनें अपने भाइयों से बिछुड़ चुकी हैं। पहले मसलन 1989 से 1998 की बात करें तो स्थिति चिंताजनक थी। तब मारे गए आम नागरिकों और आतंकियों की संख्या तकरीबन एक-सी रहती थी। दरअसल इन तीन दशकों में आतंकियों के खिलाफ सेना की मुहिम में और भी कई ट्रेंड नजर आ रहे हैं। पहले दो दशकों में सेना के ज्यादा जवान शहीद होते रहे। इस दशक में 4 से 6 गुना कमी आई। हालांकि ‘इस कमी’और ह्यपांच गुना आतंकी मारने का केंद्र की भाजपा सरकार से खास लेना-देना नहीं है।  यह ट्रेंड तो मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के अंत (2008) से ही दिखाई देने लगा था। असल में इस दौरान सीमापार से घुसपैठ तथा घाटी में आतंकी वारदातों में ही कमी आ गई। यही वजह रही कि आम नागरिकों और जवानों की मौत का आंकड़ा 18 साल में पहली बार 100 से नीचे आ गया। साथ ही मारे गए आतंकियों की संख्या भी 17 साल बाद घटकर 400 से कम हो गई। वैसे अब एक बार फिर आतंकियों के खिलाफ अभियान में तेजी है। चार दिन में सात आतंकी मार दिए गए हैं। ऐसे में आतंकियों के मारे जाने की दर और बढ़ने की उम्मीद है। (तीन दशक, तीन ट्रेंड: लगातार घटे हमले और जनहानि)(1989से 1998: ज्यादा वारदातें हुईं और ज्यादा सैनिक शहीद) मारे गए नागरिक-8640,आतंकी मार गिराए-9403,शहीद हुए जवान-2326! (1999 से 2008: आतंकी वारदातों में डेढ़ गुना कम) मारे गए नागरिक-5842, आतंकी मार गिरा-12526,शहीद हुए जवान-3512! (2009 से 2018: 27गुना तक घट गईं आतंकी घटनाएं) मारे गए नागरिक-312,आतंकी मार गिराए-1518,शहीद हुए जवान-558 पहले मसलन 1989 से 1998 की बात करें तो स्थिति चिंताजनक थी। तब मारे गए आम नागरिकों और आतंकियों की संख्या तकरीबन एक-सी रहती थी। दरअसल इन तीन दशकों में आतंकियों के खिलाफ सेना की मुहिम में और भी कई ट्रेंड नजर आ रहे हैं। पहले दो दशकों में सेना के ज्यादा जवान शहीद होते रहे। इस दशक में 4 से 6 गुना कमी आई। असल में इस दौरान सीमापार से घुसपैठ तथा घाटी में आतंकी वारदातों में ही कमी आ गई। यही वजह रही कि आम नागरिकों और जवानों की मौत का आंकड़ा 18 साल में पहली बार 100 से नीचे आ गया। साथ ही मारे गए आतंकियों की संख्या भी 17 साल बाद घटकर 400 से कम हो गई। वैसे अब एक बार फिर आतंकियों के खिलाफ अभियान में तेजी है। चार दिन में सात आतंकी मार दिए गए हैं। ऐसे में आतंकियों के मारे जाने की दर और बढ़ने की उम्मीद है।(तीन दशक, तीन ट्रेंड: लगातार घटे हमले और जनहानि)(1989से 1998: ज्यादा वारदातें हुईं और ज्यादा सैनिक शहीद)मारे गए नागरिक-8640,आतंकी मार गिराए-9403,शहीद हुए जवान-2326!(1999 से 2008: आतंकी वारदातों में डेढ़ गुना कम)मारे गए नागरिक-5842,आतंकी मार गिरा-12526,शहीद हुए जवान-3512!(2009 से 2018: 27गुना तक घट गईं आतंकी घटनाएं)मारे गए नागरिक-312,आतंकी मार गिराए-1518,शहीद हुए जवान-558। मार्च 1998 से मई 2004 तक रहा। 1998 से 2003 तक की समयावधि में देखें तो मारे गए आम नागरिकों की संख्या 5082 रही। वहीं सुरक्षा बल के 2929 जवान शहीद हुए। मगर 10147 आतंकी मार दिए गए। 2004 से 2013 तक देखें तो 1788 आम लोग, 1177 जवान तथा 4241 आतंकी मारे गए हैं। हालांकि इनके पहले कार्यकाल में 3424 आतंकी सेना ने मार गिराए। मोदी के 4.5 साल: 701 आतंकी मारे भाजपा के पूर्णबहुमत के साथ नरेंद्र मोदी मई 2014 से प्रधानमंत्री है। इस बीच 17 जून 2018 तक 161 आम नागरिक आतंकी घटनाओं का शिकार बने। सुरक्षा बल के 303 जवान भी शहीद हो गए। मगर सेना ने 701 आतंकियों को मार गिराने में सफलता हासिल की । मार्च 1998 से मई 2004 तक रहा। 1998 से 2003 तक की समयावधि में देखें तो मारे गए आम नागरिकों की संख्या 5082 रही। वहीं सुरक्षा बल के 2929 जवान शहीद हुए। मगर 10147 आतंकी मार दिए गए। 2004 से 2013 तक देखें तो 1788 आम लोग, 1177 जवान तथा 4241 आतंकी मारे गए हैं। हालांकि इनके पहले कार्यकाल में 3424 आतंकी सेना ने मार गिराए। मोदी के 4.5 साल: 701 आतंकी मारे भाजपा के पूर्णबहुमत के साथ नरेंद्र मोदी मई 2014 से प्रधानमंत्री है। इस बीच 17 जून 2018 तक 161 आम नागरिक आतंकी घटनाओं का शिकार बने।
सुरक्षा बल के 303 जवान भी शहीद हो गए। मगर सेना ने 701 आतंकियों को मार गिराने में सफलता हासिल की । वे बहुत शक्तिशाली राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निहित हितों द्वारा प्रशिक्षित, प्रेरित और वित्तपोषित हैं, वे इन शक्तियों से घातक हथियार और गोला-बारूद प्राप्त करते हैं और लोगों में कहर पैदा करते हैं। इस बदसूरत और खतरनाक, सामाजिक और राजनैतिक घटना को आतंकवाद कहा जाता है, आतंकवाद की कोई, समय, सीमा, जाति और धर्म या पंथ नहीं है। यह दुनिया भर में फैला है और समाज में और राजनीतिक समूहों के रूप में निराशा पैदा करता है, यह धार्मिक कट्टरपंथियों और गुमराह गुटों में अधिक से अधिक लोकप्रिय हो रहा है। जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद एक आम बात है। व्यापक गरीबी, बेरोजगारी, युवाओं, किसानों और मजदूर वर्ग की उपेक्षा और भावनात्मक अलगाव प्रांत में उग्रवाद के मुख्य कारण हैं। हमारी सीमाओं में शत्रुतापूर्ण बल भी बहुत मदद
कर रहे हैं। भारत की सहायता के साथ बांग्लादेश के एक स्वतंत्र राज्य बन गया जो कि पाकिस्तान को बर्दाश्त नहीं हुआ।आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और इसे अलगाव में हल नहीं किया जा सकता है। इस वैश्विक खतरे से लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहकारी प्रयासों की आवश्यकता है और दुनिया के सभी सरकारों को एक साथ और लगातार आतंकवादियों पर हमले करना चाहिए। विभिन्न देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग से वैश्विक खतरे को कम किया जा सकता है। मानवता के खिलाफ एक अपराध है और इसे पूरी कोशिश से निपटा जाना चाहिए और उसके पीछे की ताकतों को उजागर करना चाहिए। आतंकवाद, प्रतिकूल जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और हमारे साथ कठोर व्यवहार करता है। अंतिम विश्लेषण में, सभी आतंकवादी समूह आपराधिक हैं वे अच्छे और बुरे के बीच अंतर नहीं जानते और न ही वे किसी को भी छोड़ते हैं, महिलाओं और बच्चों को भी नहीं।

                   -प्रेम शंकर शर्मा पुरोहित


Saturday, 9 February 2019

स्वाइन फ्लू की गिरफ्त में पूरी दुनिया

स्वाइन फ्लू की गिरफ्त में पूरी दुनिया

एक तूफान की तरह आई ‘स्वाइन फ्लू’ बीमारी ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। लाखों लोग इससे प्रभावित हुए हैं। अभी तक यह बीमारी थमने का नाम नहीं ले रही है। इसके पीछे एच-1 एन-1 वायरस का हाथ है जिसने लाखों जिंदगयां छिन ली हैं। इंसान और वायरस के बीच पूरी दुनिया में चल रही खतरनाक लड़ाइयों की श्रृंखला में यह ताजातरीन बीमारी है। इसके अलावा हजारों ऐसे वायरस हैं जो इंसानों के जान के  दुश्मन बने हुए हैं। वैज्ञानिक इन सभी वायरसों से मुक्ति पाने के लिए प्रयासरत हैं, कि लेकिन सफलता इतनी आसान भी नहीं है। देश में स्वाइन फ्लू के बढ़ते प्रकोप के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हालात की समीक्षा की। इस दौरान सचिव को बताया गया कि साल 2019 में 4 फरवरी तक देश में स्वाइन फ्लू के कुल 6701 मामले सामने आए हैं।
 वहीं, स्वाइन फ्लू के चलते अब तक 226 सिर्फ दिल्ली में लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से ज्यादातर मौतें राजस्थान, गुजरात और पंजाब में हुई है। राजधानी दिल्ली में स्वाइन फ्लू के मरीजों की संख्या 1019 हो गई है। बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने एक बार फिर गाइडलाइन जारी की है। इसके पहले बीते शुक्रवार को सरकार ने दिशा निर्देश जारी किए थे। बीते 48 घंटे के दौरान राजधानी में 124 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके साथ ही इस जनवरी से अब तक सिर्फ दिल्ली में ही स्वाइन फ्लू पीड़ितों की संख्या 1019 हो गई है। इसमें 812 वयस्क और 207 बच्चे शामिल हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन के अनुसार खांसने और छींकने के दौरान अपनी नाक व मुंह को कपड़ा या रुमाल रखें। अपने हाथों को साबुन व पानी से नियमित धोयें, भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में जाने से बचें, फ्लू से संक्रमित हों तो घर पर ही आराम करें, फ्लू से संक्रमित व्यक्ति से एक हाथ तक की दूरी बनाए रखें, पर्याप्त नींद और आराम लें, पर्याप्त मात्रा में पानी - तरल पदार्थ पियें और पोषक आहार खाएं। इसके अलावा अपनी सुरक्षा को लेकर विशेष ध्यान रखें। यदि शरीर में दर्द या अन्य किसी तरह की परेशानी लगे तो डाक्टर से जरूर मिले। दिल्ली में स्वाइन फ्लू तेजी से फैल रहा है। अब तकसैकडों अधिक मरीज दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में पहुंच चुके हैं। जबकि रोजाना 100 के करीब मरीज स्वाइन फ्लू के लक्षणों के साथ पहुंच रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 में कुल 265 मौतें हुईं, इस बार उससे करीब चार गुना (1094) मौतें हो चुकी हैं। प्रभावितों की संख्या तो 12 गुना बढ़कर 2कई हजार से ज्यादा हो गई है।  स्वास्थ्य मंत्रालय ने बीमारी के उपचार, प्रबंधन, टीकाकरण, पृथक व्यवस्था, जोखिम के वर्गीकरण और रोकथाम उपायों के बारे में दिशानिर्देश हर अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों को जारी किए। सभी अस्पतालों को वेंटिलेटर तैयार रखने और रोग से रोकथाम के लिये सूचना प्रसारित कर रहा है।  (एच1एन1) पर राज्य स्तरीय समीक्षा बैठक के बाद दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव संजीव खिरवाल ने हाल में कहा था कि शहर में सभी सरकारी अस्पतालों में इस बीमारी के प्रबंधन के लिये आवश्यक साजो-सामान एवं निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई किट) सहित दवाइयां उपलब्ध हैं।
 साथ ही एन-95 मास्क भी मौजूद हैं। लेकिन स्थिति इन अस्पतालों की संतोषजनक नहीं है। मरीजों के लिए स्वाइन फ्लू वार्ड में जगह नहीं है, उन्हें मास्क बाजार से खरीदना पड़ रहा है। स्वाइन फ्लू, डेंगू, डायरिया जैसी बीमारियों से हजारों मौतें हो रही हैं, बाढ़ से देश भर में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, लेकिन इन मौतों पर देश भर में हैरत भरी चुप्पी है. देश भर में इस साल के आठ महीनों में अब तक सिर्फ स्वाइन फ्लू से हजारों से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं.केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार देश में इस साल अब तक लोग स्वाइन फ्लू से मारे गए हैं जो पिछले साल के आंकड़े से चार गुना ज्यादा है.साथ ही अब तक इस बीमारी के कुल 22,186 मामले सामने आए हैं. महाराष्ट्र में एच1एन1 संक्रमण से सबसे ज्यादा लोग मारे गए हैं. यह संख्या 437 है. इसके बाद गुजरात में सर्वाधिक 269, केरल में 73 और राजस्थान में 69 लोगों ने बीमारी के कारण दम तोड़ा है.आंकड़े के अनुसार भारत में  बीमारी से कुल 1,094 मौतें हुई हैं और 22,186 मामले सामने आए हैं. यह  सरकारी आंकडे है लेकिन सत्यता यह है कि मरने वालों की संख्या कई गुना ज्यादा हो सकता है। जबकि 2016 में यह संख्या क्रमश: 265 और 1,786 थी। महाराष्ट्र में  एच1एन1 संक्रमण के सबसे ज्यादा 4,245 मामले सामने आए और इसके बाद गुजरात में 3,029, तमिलनाडु में 2,994 और कर्नाटक में 2,956 मामले सामने आए.आंकड़े के अनुसार केवल अगस्त महीने में देश भर में 342 लोग मारे गए, जबकि पिछले साल इसी अवधि में छह लोग मारे गए थे.देश में 2009-10 में एच1एन1 इंफ्लूएंजा का सबसे बुरा प्रकोप आया था जब बीमारी से 2,700 से ज्यादा लोग मारे गए थे और करीब 50,000 अन्य प्रभावित हुए थे. फरवरी तक के आंकडे बता रहे है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने भी स्वाइन फ्लू के मद्देनजर लोगों के लिए परामर्श जारी किया है. कई राज्यों में स्कूलों और कॉलेजों में छात्र-छात्राओं और स्टाफ को स्वाइन फ्लू से बचने के उपाय बताए जा रहे हैं. इसके लिए बाकायदा गाइड लाइन जारी की गई हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के चीफ मेडिकल आॅफिसर (सीएमओ) ने भी स्वाइन फ्लू को लेकर स्कूलों और कॉलेजों को एडवाइजरी जारी की है, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी स्कूल और कॉलेज विद्यार्थियों को स्वाइन फ्लू से अलर्ट करें और उनको इस बचने के तरीके बताएं. अभी हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह भी स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गए थे. इसके बाद उनको दिल्ली के आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज में भर्ती कराया गया था. बीजेपी अध्यक्ष ने खुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था, मुझे स्वाइन फ्लू हुआ है, जिसका उपचार चल रहा है. ईश्वर की कृपा, आप सभी के प्रेम और शुभकामनाओं से शीघ्र ही स्वस्थ हो जाऊंगा. देश में स्वाइन फ़्लू के कारण मरने वालों की संख्या इस साल 169 हो गई है, जबकि 4,571 लोगों में स्‍वाइन फ्लू वायरस होने के संकेत मिले हैं, जिसमें राजस्थान में 40 प्रतिशत मामले हैं। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में  1,911 मामले और 75 मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद गुजरात में 600 मामले और 24 मौतें हुईं। स्‍वाइन फ्लू के मामलों में दिल्‍ली तीसरे स्‍थान पर हैं, यहां 532 लोगों के एच1 एन1 वायरस से संक्रमित होने की सूचना दी है। पंजाब में 27 मौतें और 174 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद हरियाणा में आठ मौतें और 372 मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में 82 मामले और 12 मौतें दर्ज की गई हैं। संख्या बढ़ने के साथ, स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में राज्यों के साथ एक बैठक की और उन्हें बीमारी से निपटने के लिए गाइडलाइन जारी की है। बीमारी पर काबू पाने के लिए अस्‍पताल में बेड की संख्‍या और सुविधाएं बढ़ाने के लिए भी कहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि, स्वाइन फ्लू की दवा ओसेल्टामिविर का पर्याप्त स्टॉक है और साथ ही एन 95 मास्क और डायग्नोस्टिक किट की भी कोई कमी नहीं है। राज्यों से कहा गया है कि बीमारी में क्‍या करना चाहिए और क्‍या नहीं करना चाहिए इसके बारे में विस्‍तार से बताया जाए। वहीं दिल्‍ली सरकार ने भी इस संबंध में एडवाइजरी जारी की है।
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देश में पैदा होने वाला तीसरा बच्चा सिजेरियन से पैदा होता है

देश में पैदा होने वाला तीसरा बच्चा सिजेरियन से पैदा होता है

प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में पैदा होने वाला हर तीसरा बच्चा सिजेरियन है। सीएमएचओ रायपुर की संस्थागत प्रसव रिपोर्ट के अनुसार 11 माह में 5616 बच्चों ने जन्म लिया। इनमें से नार्मल डिलीवरी 3756 व सिजेरियन डिलीवरी 1860 हुई। जिला अस्पताल में हर सातवां बच्चा आॅपरेशन से पैदा हुआ। दूसरी ओर जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिजेरियन डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या काफी कम है। वहीं निजी अस्पतालों में आॅपरेशन से पैदा होने वाली बच्चों की संख्या सरकारी अस्पताल से काफी अधिक होने की संभावना है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार आॅपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इनमें हर तीसरा बच्चा आॅपरेशन से पैदा होता है। डाक्टरों के अनुसार छोटे कद वाली महिलाओं के कूल्हे की हड्डी छोटी होने से बच्चा सामान्य तरीके से नहीं हो पाता। ऐसी अधिकांश महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी करनी पड़ती है। इनके अलावा लो लाइन प्लास्टेंटा, ट्यूमर, रक्त स्त्राव ज्यादा, बच्चे की धड़कन कम होना, सर्विक्स कैंसर,  गर्भवती का बीपी बढना, गले में गर्भनाल लिपटी होना, बच्चे का आड़ा या उलटा होना, महिला की उम्र ज्यादा होना, कई बार दवाओं से बच्चेदानी का मुंह नहीं खुल पाना ऐसे कारण हैं, जिनमें सर्जरी करनी पड़ती है। बच्चा जब पेट में ही मल-मूत्र कर दे तो उसे मिकोनियम कहते हैं, इस स्थिति में तत्काल आॅपरेशन कर बच्चे की जान बचाई जाती है। निजी अस्पतालों में गर्भवती प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी करवाती हैं। सामान्य प्रसव में महिला को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है, लेकिन सिजेरियन में कम से कम 5 दिन तक अस्पताल में रहना होता है। साथ ही, सामान्य प्रसव में 5 से 15 हजार तक ही खर्च आता है, जबकि सिजेरियन में यह खर्च चौगुना हो जाता है। इसमें एनेस्थिसिया, पीडियाट्रिशियन और अस्पताल का खर्च शामिल करें तो करीब 25 से 50 हजार रुपए हो जाता है। 

इस मुद्दे पर चेंज डॉट ओआरजी पर एक आॅनलाइन अर्जी शुरू करने वाली शोधकर्ता सुवर्णा घोष ने आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा, ह्यसिजेरियन  के जरिए बच्चे पैदा करना एक धंधा बन गया है। अस्पताल और डॉक्टर महिलाओं से पैसे बना रहे हैं और उन्हें आपरेशन से डिलिवरी की तरफ धकेल रहे हैं।  देश भर के कई अस्पतालों पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी , लापरवाही, जरूरत से ज्यादा बिल और रुपये ऐंठने के मामले सामने आते रहे हैं, ऐसे में एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी वृद्धि कई सवाल पैदा करती है।  सबसे ज्यादा हालात आंध्र प्रदेश में खराब हैं, जहां आॅपरेशन के जरिए 40.1 फीसदी बच्चे पैदा हुए। इसके बाद लक्षद्वीप में 37.1, केरल 35.8, तमिलनाडु 34.1, पुडुचेरी 33.6, जम्मू एवं कश्मीर 33.1 और गोवा में 31.4 फीसदी बच्चे आॅपरेशन के जरिए पैदा हुए हैं। वहीं दिल्ली में आॅपरेशन के जरिए पैदा होने वालों बच्चों का प्रतिशत 23.7 है। देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत 9.4 है। वहीं सबसे कम प्रतिशत नगालैंड में हैं जहां 5.8 फीसदी बच्चे आॅपरेशन के माध्यम से पैदा होते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के मुताबिक देशभर में 72 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 79 प्रतिशत आबादी निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और सरकारी अस्पताल के मुकाबले उन्हें इलाज पर चार गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस -4) के मुताबिक निजी अस्पतालों में 74.9% सिजेरियन आॅपरेशन हुए हैं। इसी सर्वे के मुताबिक तमिल नाडु में 34%, पुडुचेरी में 34%, केरल में 36%, आंध्र प्रदेश में 40%, महाराष्ट्र में 50%,और तेलंगाना में 58% डिलिवरी सिजेरियन से होती है। गर्भ में ही नवजात के बढ़े हो जाने से डिलीवरी में सिजेरियन के मामले हर साल बढ़ने लगे हैं। पिछले 5 सालों में संस्थागत प्रसव और आॅपरेशन से प्रसव की स्थिति को देखे तो सिजेरियन के केस बढ़ रहे हैं। 5 सालों में यहां कुल 82 हजार 628 बच्चों ने शासकीय व निजी अस्पतालों में जन्म लिया। इसमें से 4 हजार 509 बच्चे आॅपरेशन से हुए हैं। जो कि कुल प्रसव का मात्र साढ़े 5 प्रतिशत ही है। लेकिन यह प्रतिशत हर साल बढ़ रहे हैं। वर्ष 2012-13 में आॅपरेशन से हुए बच्चे मात्र 2.35 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2013-14 में बढ़ कर 3.46 प्रतिशत, 2014-15 में 4.77 प्रतिशत, 2015-16 में 4.97 प्रतिशत और इस वर्ष 2016-17 में सबसे अधिक 5.66 प्रतिशत पर रहा। आंकड़ों का प्रतिशत भले की कम है लेकिन यदि प्रतिशत इसी तरह बढ़ते रहे हो आने वाले दिनों में गंभीर हो सकती है।   इस सर्वे के मुताबिक उत्तर के मुकाबले दक्षिण राज्यों में सिजेरियन डिलिवरी के केस ज्यादा हो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए खुद गर्भवती महिलाएं और उनके परिजनों का डर और रिस्क न उठाने की प्रवृत्ति जिम्मेदार है। डॉक्टर सिर्फ हर परिस्थिति से मरीज और उनके परिजनों को सतर्क करते हैं, निर्णय डॉक्टरों का नहीं होता। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि डॉक्टर्स की काउंसलिंग पर ही ये निर्भर करता है कि मरीज कौन सा विकल्प चुनते हैं। नैचुरल तरीके से बच्चे को जन्म देना और सिजेरियन द्वारा प्रसव कराना दोनों ही बिल्कुल विपरीत स्थितियां हैं। नॉर्मल तरीके से जन्म देने में असहनीय कष्ट होता है फिर भी इसे अच्छा माना जाता है। वहीं आॅपरेशन द्वारा जन्म भले ही बिना तकलीफ के हो रहा हो, लेकिन इसके कई नुकसान होते हैं। सिजेरियन डिलिवरी के बाद दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि सी-सेक्‍शन के जरिये 39 हफ्तों से पैदा हुए बच्‍चों को साँस संबंधी तकलीफ होने की आशंका सामान्‍य रूप से जन्‍म लेने वाले बच्‍चों की तुलना में ज्यादा होती है। नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को एम्निओटिक फ्लूइड की सुरक्षा मिलती है , जिससे उसे पीलिया और हाइपोथर्मिया का खतरा कम होता है।वहीं सी सेक्शन से पैदा हुए बच्चे को बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। सी-सेक्‍शन करवाने वाली महिलाओं को सामान्‍य डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले इंफेक्‍शन होने का खतरा ज्यादा होता है। उन्‍हें अधिक रक्‍त बहने, रक्‍त के थक्‍के जमने, पोस्‍टपार्टम दर्द, अधिक समय तक अस्‍पताल में रहना और डिलिवरी के बाद उबरने में अधिक समय लगना, जैसी परेशानियां हो सकती है। इसके अलावा ब्‍लैडर में चोट जैसी दुर्लभ दिक्‍कत भी हो सकती है।  कई बार प्रसव में जाने से पहले ही यह तय होता है कि महिला को सिजेरियन करवाने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां और कारण जिम्मेदार होते हैं

,लखनऊ के सरकारी अस्पताल में नॉर्मल डिलिवरी 500 से 600 रूपए में हो जाती है , सिजेरियन में 2000 से 3000 तक का खर्च आता है । वो भी तब जब प्रसूता को प्राइवेट वार्ड में रखा जाए। इसमें दवा और खाना दोनों मुफ्त में उपलब्ध होता है। वहीँ प्राइवेट अस्पताल में सिजेरियन का खर्च करीब 30000 से 40000 तक आता है।इसमें दवाइयां और खाना शामिल नहीं होता। देश में 2.7 करोड़ बच्चे हर साल पैदा होते हैं. इन बच्चों में 17.2 फीसदी बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं. इस तरह हर साल 46.44 लाख बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं।इस तरह 23,220 करोड़ रुपये सिर्फ सीजेरियन डिलीवरी से निजी अस्पताल कमा रहे हैं. देश में आठ लाख चिकित्सकों के बावजूद हमारा देश स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में 195 देशों की सूची में 154वें स्थान पर है, यह चिंता का विषय है और इस पर विचार किए जाने की जरूरत है।

   - प्रेमशंकर शर्मा (पुरोहित)


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