देश में पैदा होने वाला तीसरा बच्चा सिजेरियन से पैदा होता है
प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में पैदा होने वाला हर तीसरा बच्चा सिजेरियन है। सीएमएचओ रायपुर की संस्थागत प्रसव रिपोर्ट के अनुसार 11 माह में 5616 बच्चों ने जन्म लिया। इनमें से नार्मल डिलीवरी 3756 व सिजेरियन डिलीवरी 1860 हुई। जिला अस्पताल में हर सातवां बच्चा आॅपरेशन से पैदा हुआ। दूसरी ओर जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिजेरियन डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या काफी कम है। वहीं निजी अस्पतालों में आॅपरेशन से पैदा होने वाली बच्चों की संख्या सरकारी अस्पताल से काफी अधिक होने की संभावना है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार आॅपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इनमें हर तीसरा बच्चा आॅपरेशन से पैदा होता है। डाक्टरों के अनुसार छोटे कद वाली महिलाओं के कूल्हे की हड्डी छोटी होने से बच्चा सामान्य तरीके से नहीं हो पाता। ऐसी अधिकांश महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी करनी पड़ती है। इनके अलावा लो लाइन प्लास्टेंटा, ट्यूमर, रक्त स्त्राव ज्यादा, बच्चे की धड़कन कम होना, सर्विक्स कैंसर, गर्भवती का बीपी बढना, गले में गर्भनाल लिपटी होना, बच्चे का आड़ा या उलटा होना, महिला की उम्र ज्यादा होना, कई बार दवाओं से बच्चेदानी का मुंह नहीं खुल पाना ऐसे कारण हैं, जिनमें सर्जरी करनी पड़ती है। बच्चा जब पेट में ही मल-मूत्र कर दे तो उसे मिकोनियम कहते हैं, इस स्थिति में तत्काल आॅपरेशन कर बच्चे की जान बचाई जाती है। निजी अस्पतालों में गर्भवती प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा से बचने के लिए सिजेरियन डिलीवरी करवाती हैं। सामान्य प्रसव में महिला को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है, लेकिन सिजेरियन में कम से कम 5 दिन तक अस्पताल में रहना होता है। साथ ही, सामान्य प्रसव में 5 से 15 हजार तक ही खर्च आता है, जबकि सिजेरियन में यह खर्च चौगुना हो जाता है। इसमें एनेस्थिसिया, पीडियाट्रिशियन और अस्पताल का खर्च शामिल करें तो करीब 25 से 50 हजार रुपए हो जाता है।
इस मुद्दे पर चेंज डॉट ओआरजी पर एक आॅनलाइन अर्जी शुरू करने वाली शोधकर्ता सुवर्णा घोष ने आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा, ह्यसिजेरियन के जरिए बच्चे पैदा करना एक धंधा बन गया है। अस्पताल और डॉक्टर महिलाओं से पैसे बना रहे हैं और उन्हें आपरेशन से डिलिवरी की तरफ धकेल रहे हैं। देश भर के कई अस्पतालों पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी , लापरवाही, जरूरत से ज्यादा बिल और रुपये ऐंठने के मामले सामने आते रहे हैं, ऐसे में एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी वृद्धि कई सवाल पैदा करती है। सबसे ज्यादा हालात आंध्र प्रदेश में खराब हैं, जहां आॅपरेशन के जरिए 40.1 फीसदी बच्चे पैदा हुए। इसके बाद लक्षद्वीप में 37.1, केरल 35.8, तमिलनाडु 34.1, पुडुचेरी 33.6, जम्मू एवं कश्मीर 33.1 और गोवा में 31.4 फीसदी बच्चे आॅपरेशन के जरिए पैदा हुए हैं। वहीं दिल्ली में आॅपरेशन के जरिए पैदा होने वालों बच्चों का प्रतिशत 23.7 है। देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत 9.4 है। वहीं सबसे कम प्रतिशत नगालैंड में हैं जहां 5.8 फीसदी बच्चे आॅपरेशन के माध्यम से पैदा होते हैं। नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के मुताबिक देशभर में 72 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 79 प्रतिशत आबादी निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और सरकारी अस्पताल के मुकाबले उन्हें इलाज पर चार गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस -4) के मुताबिक निजी अस्पतालों में 74.9% सिजेरियन आॅपरेशन हुए हैं। इसी सर्वे के मुताबिक तमिल नाडु में 34%, पुडुचेरी में 34%, केरल में 36%, आंध्र प्रदेश में 40%, महाराष्ट्र में 50%,और तेलंगाना में 58% डिलिवरी सिजेरियन से होती है। गर्भ में ही नवजात के बढ़े हो जाने से डिलीवरी में सिजेरियन के मामले हर साल बढ़ने लगे हैं। पिछले 5 सालों में संस्थागत प्रसव और आॅपरेशन से प्रसव की स्थिति को देखे तो सिजेरियन के केस बढ़ रहे हैं। 5 सालों में यहां कुल 82 हजार 628 बच्चों ने शासकीय व निजी अस्पतालों में जन्म लिया। इसमें से 4 हजार 509 बच्चे आॅपरेशन से हुए हैं। जो कि कुल प्रसव का मात्र साढ़े 5 प्रतिशत ही है। लेकिन यह प्रतिशत हर साल बढ़ रहे हैं। वर्ष 2012-13 में आॅपरेशन से हुए बच्चे मात्र 2.35 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2013-14 में बढ़ कर 3.46 प्रतिशत, 2014-15 में 4.77 प्रतिशत, 2015-16 में 4.97 प्रतिशत और इस वर्ष 2016-17 में सबसे अधिक 5.66 प्रतिशत पर रहा। आंकड़ों का प्रतिशत भले की कम है लेकिन यदि प्रतिशत इसी तरह बढ़ते रहे हो आने वाले दिनों में गंभीर हो सकती है। इस सर्वे के मुताबिक उत्तर के मुकाबले दक्षिण राज्यों में सिजेरियन डिलिवरी के केस ज्यादा हो रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए खुद गर्भवती महिलाएं और उनके परिजनों का डर और रिस्क न उठाने की प्रवृत्ति जिम्मेदार है। डॉक्टर सिर्फ हर परिस्थिति से मरीज और उनके परिजनों को सतर्क करते हैं, निर्णय डॉक्टरों का नहीं होता। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि डॉक्टर्स की काउंसलिंग पर ही ये निर्भर करता है कि मरीज कौन सा विकल्प चुनते हैं। नैचुरल तरीके से बच्चे को जन्म देना और सिजेरियन द्वारा प्रसव कराना दोनों ही बिल्कुल विपरीत स्थितियां हैं। नॉर्मल तरीके से जन्म देने में असहनीय कष्ट होता है फिर भी इसे अच्छा माना जाता है। वहीं आॅपरेशन द्वारा जन्म भले ही बिना तकलीफ के हो रहा हो, लेकिन इसके कई नुकसान होते हैं। सिजेरियन डिलिवरी के बाद दूसरे बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। शोध इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं कि सी-सेक्शन के जरिये 39 हफ्तों से पैदा हुए बच्चों को साँस संबंधी तकलीफ होने की आशंका सामान्य रूप से जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में ज्यादा होती है। नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को एम्निओटिक फ्लूइड की सुरक्षा मिलती है , जिससे उसे पीलिया और हाइपोथर्मिया का खतरा कम होता है।वहीं सी सेक्शन से पैदा हुए बच्चे को बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। सी-सेक्शन करवाने वाली महिलाओं को सामान्य डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं के मुकाबले इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा होता है। उन्हें अधिक रक्त बहने, रक्त के थक्के जमने, पोस्टपार्टम दर्द, अधिक समय तक अस्पताल में रहना और डिलिवरी के बाद उबरने में अधिक समय लगना, जैसी परेशानियां हो सकती है। इसके अलावा ब्लैडर में चोट जैसी दुर्लभ दिक्कत भी हो सकती है। कई बार प्रसव में जाने से पहले ही यह तय होता है कि महिला को सिजेरियन करवाने की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां और कारण जिम्मेदार होते हैं
,लखनऊ के सरकारी अस्पताल में नॉर्मल डिलिवरी 500 से 600 रूपए में हो जाती है , सिजेरियन में 2000 से 3000 तक का खर्च आता है । वो भी तब जब प्रसूता को प्राइवेट वार्ड में रखा जाए। इसमें दवा और खाना दोनों मुफ्त में उपलब्ध होता है। वहीँ प्राइवेट अस्पताल में सिजेरियन का खर्च करीब 30000 से 40000 तक आता है।इसमें दवाइयां और खाना शामिल नहीं होता। देश में 2.7 करोड़ बच्चे हर साल पैदा होते हैं. इन बच्चों में 17.2 फीसदी बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं. इस तरह हर साल 46.44 लाख बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं।इस तरह 23,220 करोड़ रुपये सिर्फ सीजेरियन डिलीवरी से निजी अस्पताल कमा रहे हैं. देश में आठ लाख चिकित्सकों के बावजूद हमारा देश स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में 195 देशों की सूची में 154वें स्थान पर है, यह चिंता का विषय है और इस पर विचार किए जाने की जरूरत है।
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