सच्ची दिवाली तभी मनेगी ..
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दीपावली खुशियों का त्योहार है वैसे तो मुख्यत: यह धन तथा ऐश्वर्य प्रदाता विष्णुप्रिया महालक्ष्मी की आराधना तथा पूजा का पर्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने से उनकी कृपा से मनुष्य को धन-संपदा तथा यश-ऐश्वर्य को प्राप्ती होती है। दीपावली मनाने के पीछे अनेक कथाएं भी प्रचलित हैं उनमें से दो मुख्य हैं- पहले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम द्वारा लंकापति रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या लौटने पर राम के आगमन तथा रावण वध की खुशी में अयोध्यावासियों द्बारा दीप जलाकर खुशी व्यक्ति करने की है तथा दूसरी मात्रवों और देवताओं के नाक सें दम कर देवे वाले दुर्दात तथा अनाचारी दानव नरकासुर का भगवान श्रीकृष्ण द्बारा अंत करके उसके कारागार से १६ हजार कन्याओं को मुक्त काराने पर लागों द्बारा खुशियां मनाने से संबंधित। बेशक भगवान श्री राम ने अधर्मी तथा अहंकारी रावण और श्रीकृष्ण अनाचार तथा अत्याचार के प्रतीक नरकासुर जैसे महाबली राक्षसों और दानवों का वध सदियों पहले ही कर दिया था लेकिन आज भीषण मंहगाई और भ्रष्टाचार रूपी रावण तथा पूरे विश्व में बढ़ते आतंकवाद और अनाचार तथा अनैतिक आचरण रूपी नरकासुर ने जनता जनार्दन का जीना दुश्वार कर दिया ऐसे में दिवाली जैसे भारत के सबसे बड़े राष्ट्रीय महापर्व को सार्थक पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। आज सामान्यजनों को अपने परिवारों का भरण- पोषण करना असंभव लगने लगा है जिसके कारण अनगिनत परिवार आत्महत्या का सहारा लेने के लिए बाध्य हो चुके है। और न जाने और कितने परिवार महंगाई और भ्रष्टाचार को भेंट चड़ने वाले हैं। न जाने कितने युवक बेरोजगारों को हताश में आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। या अपराध को ओर उन्मुख हो रहे हैं। न जाने कितने किसान बड़ते साहूकारों के कर्ज के बोक्ष और प्रकृति के प्रकोप के कारण और फसलों के चौपट हो जाने के कारण प्रतिवर्ष कीटनाशक दवाइयां को पीकर कीडे-मकोड़ों की भांति मरने को मजबूर हो रहे है और राज्य सरकारें तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। इन दैत्यों पर अंकुश लगाने को जिम्मेदारी जिन लोगों पर है, वे सभी सत्ता के मद में चूर ऐशो आराम की जिंदगी गुजार रहे हैं। जनता-जनार्दन के अर्तनाद से जैसे उनका कोई सरोकार हैं। जो लोग महंगाई और भ्रष्टचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की जुर्रत कर रहे हैं, उन्हें नाना प्रकार से प्रताडित किया जा रहा है। महात्मा गांधो ने भारत में फिर से रामराज्य लाने का सपना देखा था, लेकिन उनका नाम लेकर सत्ता हासिल करने वालों ने रावण राज लाने में कोई कसर नही छोड़ी। आज कितनी ही द्रोपदियों का चीर- हरण सरेआम सडकों पर छुट्टे सांड की तरह घूम रहे दुशासन और सपेसदपोश नेता तथा अधिकारी धूम रहे हैं। सत्ता के मद में चूर राजनेता न जाने कितनी भंवरी देवियों को अस्मत से खेल रहे हैं और जी भर जाने या पोल खुल जाने के डर से उनका कत्ल करवा रहे हैं। द्वापर में ही दुशासन से द्रोपती की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण आगे आये लेकिन आज के युग में कोई कृष्ण नजर नहीं आता। घर हो या बाजार या दफ्तर या अन्य कोई ठिकाना नारी को अस्मत आज महफूज नही रह गयी। क्या इस हालातों में दीवाली मनाने को कोई सार्थकता नजर नहीं आती है। सच्ची दीपावाली उस दिन मनेगी,जिस दिन भारत सहित पूरे विश्व से महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद. बेरोजगारी, अनाचार अनैतिक आचरण रूपी रावण तथा नरकासुर का अंत होगा। जिस दिन नारी आधी रात को भी बिना दुशासनों के भय के सडकों पर बेखौफ निर्भय होकर उन्मुक्त विचरण कर सकेगी, कोई किसान साहूकार के कर्ज के बोक्ष तले दबकर आत्महत्या करने को मजबूर नही होगा। कोई युवक बेरोजगारी से कुंठित होकर आत्महत्या या अपराध की ओर कदम नहीं बढायेगा, कोई परिवार महंगाई, बेरोजगारों के कारण आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होगा कोई युवती दहेज को बलि नहीं चढेगी या किसी युवती की बरात दहेज के कारण दरवाजे से वापस नहीं लौटेगी वह दिन भारत में सच्चे मायनों में सच्चे मायनों में दिवाली जैसा होगा और तभी दिवाली मनना सार्थक होगा।
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