जब भगत सिंह की मां की गोद में सिर रख रोए थे मनोज कुमार
हर इंसान को उसकी ज़िंदगी में एक बार किस्मत का इशारा ज़रूर मिलता है. ये इशारा बताता है कि आपको किस रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए. हां, ये बात ज़रूर है कि किस्मत का ये इशारा कुछ ही लोग समझ पाते हैं और जो समझ जाते हैं उनका नाम इतिहास में अमर हो जाता है. ऐसा ही एक इशारा मिला था पाकिस्तान में जन्में एक बच्चे को. जिसका नाम था हरिकिशन गिरी गोस्वामी. अधिकांश लोग इस नाम से वाक़िफ़ नहीं होंगे, क्योंकि ये नाम मिटा दिया गया. इसकी जगह, जो नया नाम सामने आया उसे लोग मनोज कुमार के नाम से जानते हैं. वही मनोज कुमार, जिन्होंने देशभक्ति से लबरेज़ कई शानदार फ़िल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता. "है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं. भारत का रहनेवाला हूं. भारत की बात सुनाता हूं..." आज भी जब कभी इस गाने की धुन बजती है, लोगों की आंखों के सामने मनोज कुमार का चेहरा आ ही जाता है.
हरिकिशन गिरी गोस्वामी से मनोज कुमार बनने की कहानी
मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद (तब भारत में) में जन्म हुआ था. उनके बचपन का नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी था. वह मात्र 10 साल के थे. तभी उन्हें अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी. अपने एक इंटरव्यू के दौरान मनोज कुमार ने बताया था कि वे रिफ्यूजी कैंप में भी रहे और इस दौरान उन्हें काफ़ी मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा था. इसी दौरान उनका छोटा भाई भी चल बसा. इस घटना के बाद से हरि बहुत उग्र हो गये थे. मारपीट शुरू कर दी, पुलिस के डंडे तक खाने पड़े थे. हरि की इन्हीं हरकतों से तंग आ कर इनके पिता ने इन्हें मारपीट ना करने की कासम दिलाई थी. बाद में उनका परिवार दिल्ली आ कर रहने लगा. हरि ने अपनी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से पूरी की.मनोज कुमार की बचपन से ही फिल्मों में रुचि रही. उनकी इसी रुचि ने उनकी ज़िंदगी को एक नई दिशा भी दी. उस समय के उभरते सितारे दिलिप कुमार की शबनम में मनोज कुमार उनके किरदार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम मनोज रख लिया. ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म में दिलिप साहब द्वार निभाए किरदार का नाम भी मनोज था. हरि ने सोच लिया था कि वह जब कभी अभिनेता बनेंगे तब अपना नाम मनोज कुमार ही रखेंगे. तब उन्हें भी कहां पता था कि उनका नाम मनोज कुमार तक ही सिमित नहीं रहेगा. बल्कि अपनी देशभक्ति से लबरेज़ फिल्मों के लिए वह भारत कुमार के नाम से भी जाने जाएंगे. मनोज कुमार ने अपनी सौम्य और सशक्त अभिनय शैली से एक अमिट पहचान बनाई है. फ़िल्मों में उनके शानदार अभिनय के साथ-साथ एक बात यह खास है कि ज्यादातर फिल्मों में उनके किरदार का नाम भारत था. यही कारण था कि उन्हें भारत कुमार के नाम से नई पहचान मिली. ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद अपना भाग्य आज़माने वो बम्बई चले गये.
बड़ी मुश्किल से मिली थी मनोज कुमार को पहली फिल्म
तत्कालीन PM ने मनोज कुमार से क्या आग्रह किया था?
ये सिनेमा का वो दौर था, जब पर्दे पर देशभक्ति फिल्मों की कुछ खास चहल पहल नहीं थी. फिल्म बनाने वालों को शायद लगता हो कि देशभक्ति फिल्मों से वे कुछ ज़्यादा नहीं कमा पाएंगे. लेकिन मनोज कुमार ने उनकी इस सोच को बदल दिया. उन्होंने देश प्रेम की भावनाओं पर केंद्रित एक के बाद एक बेहतरीन फिल्में बनाईं और लोगों का बेशुमार प्यार बटोरा. ‘शहीद’, ‘उपकार’, पूरब और पश्चिम’ से शुरू हुआ उनका सफर फिल्म ‘क्रांति’ तक लगातार जारी रहा. उनकी फिल्मों ने आम दर्शकों में देश प्रेम का ऐसा जज़्बा जगाया कि देशभक्ति को केंद्र में रखकर और भी फ़िल्मकार फिल्में बनाने लगे. मनोज कुमार के इस देश प्रेम से भरे कदम को केवल उस समय के दर्शकों ने ही बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी खूब सराहा. जब मनोज कुमार की फिल्म शहीद पर्दे पर आई उस समय देश में जंग का माहौल था. इसी बीच इस फिल्म को लाल बहादुर शास्त्री ने भी देखा. 1965 के भारत-पाक युद्ध समाप्त होने के बाद उन्होंने मनोज साहब से ये आग्रह किया कि वह जय जवान, जय किसान के नारे को ध्यान में रखते हुए भी कोई फिल्म बनाएं. जो उन लोगों के लिए एक सीख हो जो अपनी ज़मीन और खेती छोड़ कर दूर देशों में जा बसे हैं. प्रधानमंत्री के इस आग्रह के बाद मनोज साहब दिल्ली से मुंबई के लिए रेल यात्रा कर रहे थे. आपको जान कर हैरानी होगी कि उन्होंने इस रेल यात्रा के दौरान ही उपकार फिल्म की कहानी लिख दी. इसे 24 घंटे का समय लगा. और फिर जल्द से जल्द फिल्म पर काम शुरू हो गया. 1967 में ये फिल्म रिलीज़ हुई लेकिन अफसोस कि इससे पहले ही शास्त्री जी का निधन हो चुका था.
बुरे वक्त में अमिताभ बच्चन का सहारा बने थे मनोज कुमार
कहते हैं अगर मनोज कुमार नहीं होते तो आज हमारे बीच मेगास्टार अमिताभ बच्चन का भी कोई अस्तित्व ना बचा होता. मनोज कुमार सिनेमा जगत की मल्टी टैलेंटेड हस्ती थे. अभिनय से शुरू हुआ उनका सफर निर्देशन, फिल्मों की पटकथा कथा लेखन, प्रोडक्शन, गीत लेखन जैसे कई महत्वपूर्ण पड़ाव से हो कर गुज़रा जिससे मनोज साहब ने अपनी एक नई पहचान भी बनाई.
मनोज साहब ने शोर, उपकार, पूरब पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान जैसी फिल्मों का निर्देशन किया. इसी दौर में अमिताभ बच्चन कोशिशें कर कर के हार चुके थे. वह अब अपने माता पिता के पास दिल्ली लौटने वाले थे. यह बात मनोज साहब को पता लगी. वह नहीं चाहते थे कि बच्चन साहब मुंबई छोड़ कर जाएं. उन्हीं दिनों मनोज साहब अपनी फिल्म रोटी कपड़ा और मकान को बनाने की तैयारियों में जुटे थे. उन्होंने बच्चन साहब को इस फिल्म में एक रोल ऑफ़र करते हुए उन्हें रोक लिया. उसके बाद बच्चन साहब के साथ क्या हुआ ये तो आज हम सब जानते हैं. वैसे तो मनोज कुमार बेहद ही साफ छवि के लिए जाने जाते हैं मगर फिर भी उन्हें लेकर कुछ एक विवाद हो ही गये. हालांकि, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं फिर भी विवाद तो विवाद है. स्वर्गीय राज कपूर मेरा नाम जोकर फिल्म में मनोज कुमार की छोटी सी भूमिका चाहते थे. इसी संबंध में एक बार उन्होंने मनोज साहब को फोन लगाया था. मगर फोन पर राज कपूर के साथ बहुत रूखे ढंग से बात की गई. दोनों अच्छे दोस्त थे, बावजूद इसके राज कपूर को लगने लगा जैसे मनोज उनसे दूर भाग रहे हैं. जब ये बात मनोज साहब को पता चली तो उन्हें हैरानी हुई क्योंकि उन्होंने राज कपूर से बात ही नहीं की थी. इसके बाद दोनों मिले और मनोज साहब ने राज कपूर को ये कहा कि उनके साथ काम करना एक कर्मयोगी के साथ काम करने जैसा है. इस बात पर राज कपूर भावुक होकर मनोज कुमार की गोद में सर रख कर रोने लगे थे. इसके अलावा एक विवाद तब खड़ा हुआ, जब फिल्म ओम शांति ओम में शाहरुख खान ने फिल्म में एक ऐसा सीन रखा जिसमें मनोज कुमार साहब की नकल की गई थी. मनोज साहब इससे काफ़ी नाराज़ हुए लेकिन बाद में शाहरुख खान ने उनसे माफी मांग ली. मनोज साहब ने भी उन्हें माफ कर दिया.
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